Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

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Page 32
________________ श्री रामकपुरतीर्थ] के दर्शन किये जा सकते हैं। प्रमुख देवकुलिका ने चतुष्क का उत्तना ही समानान्तर भाग घेरा है, जितना भाग प्रतोली एवं सिंह-द्वारों ने चारों दिशाओं में अधिकृत किया है। प्रासाद में चार कोणकुलिकाओं के तथा मूलनायक कुलिका का शिखर मिलाकर ५ शिखर हैं, १८४ भूगृह हैं, जिनमें पाँच खुले हैं, पाठ सब से बड़े और पाठ उनसे छोटे और आठ उनसे छोटे कुल २४ मण्डप हैं, ८४ देवकुलिकायें हैं, चारों दिशाओं के चार सिंहद्वार हैं । समस्त प्रासाद सोनाणा और सेवाड़ी प्रस्तरों से बना है और इतना सुदृढ़ है कि आततायियों के आक्रमण को और ५०० पाँच सो वर्ष के काल को मेल कर भी आज वैसा का वैसा बना खड़ा है । परमाहत सं० धरणाशाह की उज्ज्वल कीर्ति की कथा ऐसी प्रचलित है कि मुण्डारानिवासी सोमपुरा देपाक एक साधारण ज्ञानवाला शिल्पकार थी। सं० धरणाशाह द्वारा निमन्त्रित कार्यकरों में वह भी था। देपार्क को रात्रि में देवी का स्वप्न हुआ, क्योंकि वह देवी का परम भक्त था । देवी ने देपाक को कहा कि वह ऐसा चित्र बनाकर ले जावे जैसा चित्र एक कृषक सीधा और श्राड़ा हल चलाकर अपने क्षेत्र में उभार देता है, जिसमें केवल प्रायः समानान्तर सीधी और आड़ी रेखाओं के अतिरिक्तं कुछ नहीं होता है । जहाँ ये सीधी और आड़ी रेखायें परस्पर एक दूसरे से मिलती अथवा काटती है, वहाँ स्तम्भों का आरोपणं समझना चाहिए। सोमपुरा देपाक देवी के आदेश एवं संकेत के अनुसार रेखा-चित्र बना कर ले गया । नलिनीगुल्मविमान इसी चित्र के प्रकार का होता है। बस सं० धरणाशाह ने देपाक का चित्र पसन्द किया. और देपाक को प्रमुख कार्यकर बनाकर उसकी देख-रेख में मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया।

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