Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

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Page 15
________________ [श्रेष्ठि संघवी धरणा सिरोही के महाराव का नांदिया सिरोही-राज्य का ग्राम था प्रकोप और सं० धरणा और उन दिनों सिरोही के राजा महाका मालगढ़ में बसना राव सेसमल थे। महाराव सेसमल प्रतापी थे और उन्होंने आस-पास के प्रदेश को जीत कर अपना राज्य अत्यधिक बढ़ा लिया था। सेसमल बड़े स्वाभिमानी राजा थे। सं० धरणा सिरोही-राज्य का अति प्रतिष्ठित पुरुष था। सं० धरणा का मांडवगढ़ में जाकर कैद होना उन्हें बहुत बुरा अखरा और उसमें उनको अपनी मान-हानि का अनुभव हुआ। महाराव सेसमल ऐसा मानते थे कि अगर सं० धरणा शाहजादा को रुपया उधार नहीं देता तो सं० धरणा कभी मांडवगढ़ में जाकर कैद भी नहीं होता, इस प्रकार सं० धरणा को उसके खुद के कैदी बनने का कारण महाराव सेसमल सं० धरणा को ही समझते थे और उसको भारी दण्ड देने पर तुले बैठे थे। सं० धरणा को यह ज्ञात हो गया कि महाराव सेसमल उस पर अत्यधिक कुपित हुये बैठे हैं, वह नांदिया ग्राम को त्याग कर सपरिवार मालगढ़ नामक ग्राम में, जो मेदपाद प्रदेश के अन्तर्गत था आ बसा । महाराणा कुम्भा उन दिनों प्रसिद्ध दुर्ग कुम्भालमेर में ही अधिक रहते थे। मालगढ़ और कुम्भलगढ़ एक ही पर्वतश्रेणी में कुछ ही कोषों के अन्तर पर आ गये हैं। जब महाराणा कुम्भा ने यह सुना कि सं० धरणा मालगढ़ में सपरिवार आ बसे हैं, उन्होंने अपने १. सि० इति० पृ० १६४-६५ २. बाली (मरुधर) के कुलगुरु भट्टारक मियाचन्द्रजी की पौषधशाला की वि० सं०१६२५ में पुनर्लिखित सं० घरणा के वंशजों की ख्यातप्रति के आधार पर ।

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