Book Title: Sanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Sangh Sabha

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Page 22
________________ श्री राणकपुरतीर्थ ] [१३ थे । कुम्भलगढ़ दुर्ग से १०-१२ मील के अन्तर पर मालगढ़ ग्राम आज भी विद्यमान है, जिसमें परमाहंत धरणा और रत्ना रहते थे। कुम्भलगढ़ से जो मार्ग मालगढ़ को जाता है, उसमें माद्री पर्वत पड़ता है। इसी माद्री पर्वत की रम्यः उपत्यका में मादड़ी ग्राम जिसका शुद्ध नाम माद्री पर्वत की उपत्यका में होने से भाद्री था बसा हुआ था। मादड़ी ग्राम अगम्य एवं दुर्भद स्थल में भले नहीं भी बसा था, फिर भी वहाँ दुश्मनों के आक्रमणों का भय नितान्त कम रहता था। सं० धरणाशाह को त्रैलोक्यदीपक नामक जिनालय बनवाने के लिये मादड़ी ग्राम ही सर्व प्रकार से उचित प्रतीत हुआ। रम्य पर्वत श्रेणियाँ, हरी-भरी उपत्यका, प्रतापी महाराणों के दुर्ग कुंभलगढ़ का सानिध्य, ठीक पार्श्व में मघा सरिता का प्रवाह, दुश्मनों के सहज भय से दूर आदि अनेक बातों को देख कर सं० ' धरणाशाह ने मादड़ी ग्राम में महाराणा कुम्भकर्ण से भूमि खरीद की और मादड़ी का नाम बदलकर राणकपुर रक्खा । राणकपुर महाराणा शब्द का राणक और सं० धरणा की ज्ञाति पोरवाल का पोर, पुर का योग है जो दोनों की कीर्ति को सूर्य-चन्द्र जब तक प्रकाशमान रहेंगे प्रकाशित करता रहेगा। श्रीत्रैलोक्यदीपक धरण- विशाल संघ समारोह एवं धूम-धाम के विहार नामक चतर्मख मध्य सं० धरणा ने धरणविहार नामक आदिनाथ जिनालय का चतुर्मुख आदिनाथ जिनालय की नींव शिलान्यास और जिना- वि० सं० १४६५ में डाली। इस समय लय के भूरहों व चतुष्क दुष्काल का भी भयंकर प्रकोप था। का वर्णन गरीब जनता को यह वरदान सिद्ध ..... हुआ। मंडारा ग्राम निवासी प्रसिद्ध शिल्पज्ञ कार्यकर सोमपुराज्ञातीय देपाक की तत्त्वावधानता में

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