Book Title: Sandergaccha ka Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf View full book textPage 3
________________ १९६ शिवप्रसाद कल्पसूत्र के वि० सं० १५८६ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति' इस प्रशस्ति में संडेरगच्छीय आचार्यों की जो गुर्वावली मिलती है, वह इस प्रकार है ――― यशोभद्रसूरि मुनिगंगा (वि. सं. १५८६ ) इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि शालिसूरि के प्रशिष्य एवं हर्षसागर के शिष्य मुनि गंगा के पठनार्थ एक श्रावक द्वारा कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार करायी गयो । हर्षसागर और मुनिगंगा शालिसूर के संभवत: पट्टधर नहीं थे, अतः उनका नाम परिवर्तित नहीं हुआ । इस प्रशस्ति की गुर्वावली में भी चार नामों के पुनरावृत्ति की झलक है, परन्तु इन आचार्यों के किन्ही विशिष्ट कृत्यों यथा साहित्य रचना आदि की कोई चर्चा नहीं है । भोजचरित्र के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि-सुमतिसूरि-शांतिसूरि का उल्लेख करते हुए शांतिसूरि के शिष्य नयनकुञ्जर और हंसराज द्वारा भोजचरित्र की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है । १. शालिसरि I " सुमतिसूरि शांतिसूर ईश्वरसूरि 1 शालिसूरि हर्ष सागर २. Catalogue of Sanskrit & Praprit Manuscripts In Jesalmer Collection--- Compiled By Muni Shree Punya Vijayaji, No. 1398. श्रीसंडेरगच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने तत्पट्टे श्रीशालिसूरिः, तत्पट्टे श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टे श्री शान्तिसूरयः । तदन्वये श्रीशान्तिसूरिविजयराज्ये वा० श्रीनइ (य) कुंजर द्वितीयशिष्यमु० हंसराजः (जेन) श्रीभोजचरित्रं सम्पूर्ण कृतम् ॥ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts-Muni Punyavijayjis Collection-Ed by A. P. Shah Part-II No-4936. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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