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पूर्वमध्यकाल में पश्चिमी भारत में निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर श्रमण संघ की विभिन्न गच्छों के रूप विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई । कुछ गच्छों का नामकरण विभिन्न नगरों के नाम के आधार पर हुआ, जैसे कोरंट ( वर्तमान कोरटा ) से कोरंटगच्छ, नाणा ( वर्तमान नाना ) से नाणकीयगच्छ, ब्रह्माण ( वर्तमान वरमाण ) से ब्रह्माणगच्छ, संडेर ( वर्तमान सांडेराव ) से संडेरगच्छ, पल्ली ( वर्तमान पाली ) से पल्लीवालगच्छ, उपकेशपुर ( वर्तमान ओसिया ) से उपकेशगच्छ, काशहृद ( वर्तमान कार्यद्रा ) से काशहृदगच्छ आदि । इस लेख में संडेरगच्छ के सम्बन्ध में यथाज्ञात साक्ष्यों के आधार पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है ।
संडेरगच्छ का इतिहास
शिवप्रसाद
संडेरगच्छ चैत्यवासी आम्नाय के अन्तर्गत था । यह गच्छ १०वीं शती के लगभग अस्तित्त्व में आया । ईश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । उनके शिष्य एवं पट्टधर श्री यशोभद्रसूरि गच्छ के महाप्रभावक आचार्य हुए। संडेरगच्छीय परम्परा के अनुसार यशोभद्रसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर शालिसूरि और आगे क्रमशः सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि (द्वितीय) हुए। पट्टधर आचार्यों के नामों का यह क्रम लम्बे समय तक चलता रहा ।
संडेरगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये हमारे पास मूलकर्ता के ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराने वाले गृहस्थों की प्रशस्तियां एवं स्वगच्छी आचार्यों के रचनाओं की प्रशस्तियां सीमित संख्या में उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त राजगच्छीयपट्टावली ( रचना काल वि० सं० १६वीं शती लगभग ) एवं वीरवंशावली ( रचनाकाल वि. सं. १७वीं शती लगभग) से भी इस गच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है । संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। इनमें से अधिकांश प्रतिमायें लेखयुक्त हैं । पट्टावलियों की अपेक्षा ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियाँ और प्रतिमा लेख समसामयिक होने से ज्यादा प्रामाणिक हैं । इस लेख में इन्हीं आधारों पर संडेरगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है । इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है
साहित्यिक साक्ष्य -
षट्वधावश्यक विवरण की दाता प्रशस्ति' ( लेखन काल वि. सं. १२९५ ई० सन् १२२९ ) इस ग्रन्थ की दाता प्रशस्ति में सौर्वाणिक पल्लीवालज्ञातीय श्रावक तेजपाल द्वारा विधा
1.
Gandhi, L B.-A Discriptive Catalogue of Manuscripts In the Jaina Bhandar's At Pattan, Vol I, Baroda - 1937 pp. 121 No. 176.
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संडेरगच्छ का इतिहास
१९५ वश्यकविवरण ( आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित योगशास्त्र का एक अध्याय ) की प्रतिलिपि संडेरगच्छीय गणि आसचन्द्र के शिष्य पंडित गुणाकर को दान में देने का उल्लेख है। परन्तु गणि आसचन्द्र संडेरगच्छ के किस आचार्य के शिष्य थे, यह ज्ञात नहीं होता है। संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यक साक्ष्य है, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अन्तर्गत महावीरचरित्र की दाता प्रशस्ति ( लेखन काल वि. सं. १३२४ ई० सन् १२६७)'
इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि का महान् प्रभावक आचार्य के रूप में उल्लेख है। यह प्रशस्ति खंडित है; अतः इसमें यशोभद्रसूरि के बाद के आचार्य का नाम (जो शालिसूरि होना चाहिए ) नहीं मिलता, फिर आगे सुमतिसूरि का नाम आता है और इन्हें दशवैकालिकटीका का रचयिता बताया गया है। इनके पश्चात् शान्तिसूरि और फिर ईश्वरसूरि के नाम आते हैं। प्रशस्ति में आगे दाता श्रावक परिवार की विस्तृत वंशावली दी गयी है।
इसी श्रावक परिवार के एक सदस्य द्वारा कल्पसूत्र एवं कालकाचार्यकथा की प्रतिलिपि करायी गयी। यद्यपि इनकी दाताप्रशस्ति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, फिर भी इस प्रशस्ति को लिखवाने वाला श्रावक उक्त ( श्रावक) परिवार का ही एक सदस्य होने से इसका रचनाकाल वि० सं० को चौदहवीं शताब्दी का मध्य माना जा सकता है। इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और फिर ईश्वरसूरि का नाम आता है और अन्त में उसी श्रावक परिवार की वंशावली दी गयी है। इस प्रशस्ति से यह सिद्ध हो जाता है कि संडेरगच्छ में इन्हीं चार पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति होती रही। इस तथ्य का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यक प्रमाण है।
परिशिष्टपर्व के वि० सं० १४७९।ई. सन् १४२२ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति
इस प्रशस्ति के अनुसार संडेरगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि के संतानीय शांतिसूरि के शिष्य मनि विनयचन्द्र ने श्री सोमकलश के उपदेश से वि० सं० १४७९ ज्येष्ठ सुदि प्रतिपदा मंगलवार को उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार की। वि. सं. १४७९ में आचार्य शांतिसूरि संडेरंगच्छ के प्रमुख थे, ऐसा इस प्रशस्ति से स्पष्ट होता है।
1.
Muni Punya Vijaya-Catalogue of Palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay pp. 306-7.
2.
3.
Muni Punya Vijaya-पूर्वोक्त क्रमांक ५२, पृ० ७८. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts-Muni Punya Vijayajis Collection By A. P. Shah, Part II, No. 3790.
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शिवप्रसाद
कल्पसूत्र के वि० सं० १५८६ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति'
इस प्रशस्ति में संडेरगच्छीय आचार्यों की जो गुर्वावली मिलती है, वह इस प्रकार है
―――
यशोभद्रसूरि
मुनिगंगा (वि. सं. १५८६ )
इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि शालिसूरि के प्रशिष्य एवं हर्षसागर के शिष्य मुनि गंगा के पठनार्थ एक श्रावक द्वारा कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार करायी गयो । हर्षसागर और मुनिगंगा शालिसूर के संभवत: पट्टधर नहीं थे, अतः उनका नाम परिवर्तित नहीं हुआ । इस प्रशस्ति की गुर्वावली में भी चार नामों के पुनरावृत्ति की झलक है, परन्तु इन आचार्यों के किन्ही विशिष्ट कृत्यों यथा साहित्य रचना आदि की कोई चर्चा नहीं है ।
भोजचरित्र के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति
इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि-सुमतिसूरि-शांतिसूरि का उल्लेख करते हुए शांतिसूरि के शिष्य नयनकुञ्जर और हंसराज द्वारा भोजचरित्र की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है ।
१.
शालिसरि I "
सुमतिसूरि
शांतिसूर
ईश्वरसूरि
1
शालिसूरि
हर्ष सागर
२.
Catalogue of Sanskrit & Praprit Manuscripts In Jesalmer Collection--- Compiled By Muni Shree Punya Vijayaji, No. 1398.
श्रीसंडेरगच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने तत्पट्टे श्रीशालिसूरिः, तत्पट्टे श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टे श्री शान्तिसूरयः । तदन्वये श्रीशान्तिसूरिविजयराज्ये वा० श्रीनइ (य) कुंजर द्वितीयशिष्यमु० हंसराजः (जेन) श्रीभोजचरित्रं सम्पूर्ण कृतम् ॥ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts-Muni Punyavijayjis Collection-Ed by A. P. Shah Part-II No-4936.
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संडेरगच्छ का इतिहास षट्पंचासिकास्तवक के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन को दाता प्रशस्ति'
इस प्रशस्ति में आचार्यों की गुर्वावली न मिलकर उपाध्याय और उनके शिष्यों की गुर्वावली मिलती है और यही कारण है कि इसमें परम्परागत नाम नहीं मिलते हैं। सन्देहशतक की वि० सं० १७५० में तैयार की गयी प्रतिलिपि की दाता प्रशस्ति से भी इसी तथ्य को पुष्टि होती है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संडेरगच्छ में गच्छनायक आचार्यों को ही परम्परागतनाम दिये जाते थे, शेष मुनियों के वही नाम अन्त तक बने रहते थे जो उन्हें दीक्षा के समय दिये जाते थे।
___ संडेरगच्छीय आचार्यों की लम्बी परम्परा में सुमतिसूरि ( चतुर्थ ) के शिष्य शांतिसूरि (चतुर्थ ) ने वि. सं. १५५० में सागरदत्तरास और इनके शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) ने वि. सं. १५६१ में ललितांगचरित; वि. सं. १५६४ में श्रीपालचौपाई तथा इनके शिष्य धर्मसागर ने वि. सं. १५८७ में आरामनंदनचौपाई की रचना को। इनके सम्बन्ध में यथास्थान प्रकाश डाला गया है। यहाँ इन रचनाओं के सम्बन्ध में यही कहना अभीष्ट है कि इनकी प्रशस्ति में भी परम्परागत पट्टधर आचार्यों के नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना नहीं मिलती, जिससे इस गच्छ के इतिहास पर विशेष प्रकाश डाला जा सके । संडेरगच्छोय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण
संडेरगच्छ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन उपलब्ध अभिलेख वि० सं० १०३० / ई० सन् ९८२ का है जो आज करेड़ा (प्राचीन करहेटक ) स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है
(१) संवत् १०३९ (व)र्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि सन्तानीय श्री श्यामा..... (?)
चार्या.......
(२) ........."प्र० भ० श्रीयशोभद्रसूरिभिः श्रीपार्श्वनाथ बिबं प्रतिष्ठितं ।। न ॥ पूर्व चन्द्रेण कारितं........
संडेरगच्छ के आदिम एवं महाप्रभावक आचार्य यशोभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित एवं अद्यावधि एकमात्र उपलब्ध प्रतिमापर उत्कीर्ण यह लेख संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला प्रथम अभिलेख है। साहित्यक साक्ष्यों ( पट्टावलियों ) के आधार पर यशोभद्रसूरि का समय वि. सं. ९५७/ई० सन्
मू० अन्तः-इति षट्पञ्चाशिकाटीका समाप्ता ।। ___श्रीबृहत्श्रीश्रीसंडेरगच्छे उपाध्या[य]श्रीधर्मरत्नशिष्यवा० श्रीसि(स)हजसुन्दरउपाध्या[य] श्रीजि[जयतिलक-पं० श्रीभावसुन्दर उपाध्या[य] श्रीक्षमामूर्तिउपाध्या[य] श्रीक्षमासुन्दरविजयराज्ये ग० श्रीसंयमवल्लभ-वा० श्रीआणन्दचन्द्र-वा० श्री न्या[ज्ञानसागर मु. सामलमु० देपा-जोवन्त-डङ्गासमस्तसाधुयुते उपाध्या[य] श्रीक्षमासुन्दर-शिष्यचेलानेतालिखितं, सांप्रतं राणाश्रीउदयसङ्घराज्ये उटालाग्रामे लिखितम् । शाह, पूर्वोक्त, भाग ३, क्रमांङ्क ७२६१ । वही, भाग १, क्रमाङ्क ३२६९. नाहर, पूरनचन्द-जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क १९४८
२. ३.
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१९८
शिवप्रसाद ९०० से वि. सं. १०३९/ई० सन् ९८२ माना जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यशोभद्रसूरि' अपने जीवन के अन्तिम समय तक पूर्णरूप से धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहे।
वि. सं. १११० से वि. सं. ११७२ तक के ४ में अभिलेख, जो संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं, में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता, इनका विवरण इस प्रकार है(i) वि. सं. ११२३ सुदि ८ सोमवार
परिकर पर उत्कीर्ण लेख,
इस परिकर में आज पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, परन्तु इस लेख में ज्ञात होता है, कि इसमें पहले महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित रही।
स्थान-जैन मन्दिर, बीजोआना (ii) वि. सं. १११० ( तिथिविहीन )२
पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्रतिष्ठास्थान-चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर (ii) वि. सं. ११६३ ज्येष्ठ सुदि १० (iv) वि. सं. ११७२ ( तिथिविहीन लेख )५
प्रतिष्ठास्थान-जैनमन्दिर, सेवाड़ी
सांडेराव स्थित जिनालय के गूढ़ मंडप में एक आचार्य और उनके शिष्य की प्रतिमास्थापित है। इस पर वि. सं. ११९७ का एक लेख भी उत्कीर्ण जिससे ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा संडेरगच्छीय पं० जिनचन्द्र के गुरु देवनाग की है। देवनाग सन्डेरगच्छीय किस आचार्य के शिष्य थे? यह ज्ञात नहीं है।
जैसा कि हम पहले देख चुके हैं इस गच्छ में आचार्य यशोभद्रसूरि के सन्तानीय ( शिष्य ) के रूप में सर्वप्रथम शालिसूरि, उनके पश्चात् सुमतिसूरि उनके बाद शांतिसूरि और शांतिसूरि के बाद ईश्वरसूरि क्रमशः पट्टधर होते हैं, ऐसी परम्परा रही है, परन्तु इन परम्परागत नामों के
१. यशोभद्रसूरि के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य-वीरवंशावली (विविधगच्छीय
पट्टावली संग्रह-[संपा० मुनि जिनविजय] में प्रकाशित); ऐतिहासिक रास संग्रह, भाग २; जैन
परम्परानो इतिहास, भाग १, (त्रिपुटी महाराज) आदि । २. विजयधर्मसूरि-सम्पा०-प्राचीन लेख संग्रह, लेखाङ्क १ ३. मुनिविशालविजय-सम्पा०-राधनपुर प्रतिमा लेख संग्रह, लेखाङ्क ३
जैनसत्यप्रकाश वर्ष-२, पृ० ५४३, क्रमाङ्क ४१
मनिजिनविजय, संपा. प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क २२३ ६. मुनिविशालविजय-सांडेराव, पृ० १५
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संडेरगच्छ का इतिहास
१९९ उल्लेख वाला सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि. सं. ११८१ का है, जो नाडोल के एक जैन मन्दिर में मूलनायक के परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इसमें यशोभद्रसूरि के संतानीय शालिभद्रसूरि (प्रथम) का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में रूप में उल्लेख है। इसके बाद वि. सं. १२१० पंचतीर्थी के लेख जो जैन मन्दिर, सम्मेदशिखर में आज प्रतिष्ठित है, प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता। वि. सं. १२१५ के एक लेख में पुनः शालिभद्रसूरि का उल्लेख आता है। अतः वि. सं. १२१० के उक्त पंचतीर्थी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक शालिसूरि (प्रथम) ही रहे होगें ऐसा माना जा सकता है।
वि. सं. १२१८, १२२१, १२३३ और १२३६ के लेखों में यद्यपि प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है, तथापि उनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १२१८ श्रावण सुदि १४ रविवार ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख
यह ताम्रपत्र पहले जैन मन्दिर 'नाडोल' में था, परन्तु अब रायल एशियाटिक सोसायटी, लन्दन में सुरक्षित है।
वि. सं. १२२१ माघ वदि शुक्रवार सभा मंडप में उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-महावीर जिनालय, सांडेराव वि. सं. १२३३ ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान-जैन मन्दिर, अजारी वि. सं. १२३६ ज्येष्ठ सुदि १३ शनिवार
वि. सं. १२३७, १२५१ एवं १२५२ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में यशोभद्रसूरि के सन्तानीय एवं शालिसूरि के पट्टधर सुमतिसूरि (प्रथम) का नाम आता है। इनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १२३७ फाल्गुनसुदि १२ मंगलवार परिकर के नीचे का लेख
१. विजयधर्मसूरि, संग्राहक एवं सम्पादक-प्राचीन लेख संग्रह, लेखाङ्क ५ २. नाहर, पूरनचन्द, जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क१६८७; ३. अमीन, जे० पी०-खंभातनुं जैन मूर्ति विधान, पृ० ३२, लेखाङ्क २; ४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ८३९
मनिविशालविजय-सांडेराव १० १६
मनिजिनविजय-प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क ३४९ ६. मुनि जयन्तविजय-अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह (आबू भाग ५) लेखाङ्क ४१ ७. शाह, अम्बालाल पी०- "जैन तीर्थ सर्व संग्रह" पृ० २१३ ८. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, लेखाङ्क २३
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२००
प्रतिष्ठापक आचार्य - सुमतिसूरि; प्रतिष्ठास्थल - बड़ा जैन मन्दिर, नाडोल
शिवप्रसाद
वि. सं. १२५१ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार ' आदिनाथ की परिकर युक्त प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर, बोया, मारवाड़ वि. सं. १२५२ माघ वदि ५ रविवार २
शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ की प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख
वर्तमान प्रतिष्ठा स्थान - सोमचितामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात
जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार में बोधकाचार्य के शिष्य सुमतिसूरि द्वारा वि. सं. १२२० में रचित दशकालिक टीका उपलब्ध है । बोधकाचार्य और उनके शिष्य सुमतिसूरि किस गच्छ के थे, यह ज्ञात नहीं होता है ।
जैसा कि पहले देख चुके हैं, सन्डेरगच्छीय शालिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर वि. सं. ११८१ से वि. सं. १२१५ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनके शिष्य सुमतिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२३६ से १२५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि वि. सं. १२१५ के पश्चात् ही सुमतिसूरि अपने गुरु के पट्ट पर आसीन हुए । ऐसी स्थिति में वि. सं. १२२० में दशवेकालिकटीका के रचनाकार सुमतिसूरि को संडेरगच्छीय सुमतिसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं प्रतीत होती है ।
यशोभद्रसूरि के तृतीय संतानीय एवं शान्तिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२४५ से वि. सं. १२९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । नाडोल के चाहमान नरेश का मन्त्री और महामात्य वस्तुपाल का अनन्य मित्र यशोवीर इन्हीं शान्तिसूरि का शिष्य था । यशोवीर ने आबू स्थित विमल सही में जो देवकुलिकायें निर्मित करायीं, उनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापन का कार्य शान्तिसूरि ने ही सम्पन्न किया था। इसी कालावधि वि. सं. १२४५ - १२९८ के मध्य वि. सं. १२६६ एवं वि. सं. १२६९ में प्रतिष्ठापित कुछ प्रतिमायें जो संडेरगच्छ से सम्बन्धित हैं, प्रतिमा
१.
२.
3.
विजयधमंसूरि - पूर्वोक्त, लेखाङ्क २६
अमीन, जे० पी० - पूर्वोक्त, पृ० ३२-३३
Catalouge of Sanskrit & Prakrit Mss., Jesalmer Collection P-30-31 नोट: - पूना और खंभात के ग्रन्थ भण्डारों में भी दशवैकालिकटीका की प्रतियां विद्यमान हैं ।
जिनरत्नकोश पृ० १७०
द्रष्टव्य — Discriptive Catalouge of the Govt. Collection of Mss. Vol. XVIII, Jaina Literature & Philosophy, Part III No-716;
Catalouge of Palm-Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, Part II, P- 305; जिनरत्नकोश पृ० १७०;
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संडेरगच्छ का इतिहास
२०१ प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता, तथापि ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उक्त प्रतिमायें भी शान्तिसुरि ने ही प्रतिष्ठापित की होगी। शान्तिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार हैशांतिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमालेखों का विवरण
वि. सं. १२४५ ( तिथि विहीन लेख )'
मंत्री यशोवोर द्वारा नेमिनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित करने का इस लेख में विवरण दिया गया है।
प्रतिष्ठा स्थान-देहरी संख्या ४५, विमलवसही ( आबू ) वि. सं. १२६९ माघ ३ शनिवार प्रतिष्ठा स्थान-जैन मन्दिर, अजारी भगवान् चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वि. सं. १२७४ वैशाखसुदि ३३ प्रतिष्ठा स्थान-जैन मन्दिर, डभोई वि. सं. १२९१ ( तिथि विहीन लेख )४ मंत्री यशोवीर द्वारा पद्मप्रभ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित कराने का विवरण प्रतिष्ठा स्थान-लूणवसही-आबू ( देहरी संख्या ४१ )
देहरो संख्या ४० पर भी वही लेख है, परन्तु इसमें सुमतिनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका में स्थापित कराने का उल्लेख है ।
वि. सं. १२९७ वैशाख सुदि ३५ शान्तिसूरि के परिकर वाली प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-जैन मन्दिर-अजारी वि. सं. १२९८ तिथि विहीन लेख
मल्लिनाथ जिनालय, खंभात में मन्त्री यशोवीर के पुत्र देवधर, उसकी पत्नी देवश्री और उनके पुत्रों द्वारा नन्दीश्वरद्वीप की स्थापना का उल्लेख है। वर्तमान में यह चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय के गर्भगृह के बगल में दीवाल में स्थापित है।
१. मुनि जिनविजय-पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क २१३
मुनि कल्याणविजय-प्रबन्ध पारिजात पृ० ३६२, लेखाङ्क १२१ २. मुनि जयन्तविजय-आबू, भाग २, लेखाङ्क ४० ३. मुनि बुद्धिसागर-जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह, भाग १, लेखाङ्क ५६ ४. मुनि कल्याणविजय-पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४०-४१ (लूणवसही के लेख) ५. मुनि जयन्तविजय, आबू भाग ५ लेखाङ्क ४२३ ६. अमीन, जे० पी०-पूर्वोक्त, पृ० १४ एवं ३३
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२०२
शिवप्रसाद
दो प्रतिमा लेख, जिनमें प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं हैवि. सं. १२६६ कार्तिक वदि २ बुधवार' स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-वीर जिनालय, सांडेराव वि. सं. १२६९ फागुण सुदि ४ गुरुवार स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान—जैन मन्दिर, सांडेराव
शान्तिसूरि (प्रथम) के पट्टधर ईश्वरसूरि (द्वितीय) हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठित वि. सं. १३०७ एवं १३१७ के दो लेख मिले हैं जो इस प्रकार हैं
वि. सं. १३०७ वैशाख सुदि ५ गुरुवार शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात वि. सं. १३१७ ज्येष्ठ वदि ११ बुधवार संभवनाथ की प्रतिमा को देवकुलिका सहित प्रतिष्ठित कराने का उल्लेख, प्रतिष्ठा स्थान-बावनजिनालय की देहरी, उदयपुर
संडेरगच्छीय गुर्वावली का सामान्य रूप से यही क्रम प्राप्त होता है, परन्तु शान्तिसूरि और शालिसूरि द्वारा प्रतिष्ठित कुछ जिनप्रतिमायें जो वर्तमान में स्तम्भतीर्थ स्थित मल्लिनाथ जिनालय में सुरक्षित हैं, उनपर उत्कीर्ण लेखों से विचित्र तथ्य प्राप्त होते हैं।
जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, शालिसूरि का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम अभिलेख वि. सं. ११८१ और अन्तिम अभिलेख वि. सं. १२१५ का है। इसके बाद सुमतिसूरि द्वारा प्रतिष्ठित वि. सं. १२३७ से वि. सं. १२५२ तक के लेख विद्यमान हैं। इसके आगे शान्तिसुरि द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के लेख भी वि. सं १२४५ से वि. सं. १२९८ तक के हैं। यह स्वाभाविक क्रम है, परन्तु वि. सं. १२१५ में शान्तिसूरि' (प्रथम) शालिसूरि के साथ एवं वि. सं. १२५२ में शालिसूरि' सुमतिसूरि (प्रथम) के साथ प्रतिष्ठाकार्य सम्पन्न करा रहे है, यह विचारणीय है।
ईश्वरसूरि (द्वितीय) के पट्टधर शालिभद्रसूरि (द्वितीय) हए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमालेख आज उपलब्ध हैं । उनका विवरण इस प्रकार है
१. मुनि विशालविजय, सांडेराव, पृ० १८-१९ २. वही, पृ० २१ ३. अमीन-पूर्वोक्त पृ० १२ और ३३ ४. नाहर, पूर्वोक्त भाग २ लेखाङ्क १९५१ ५. अमीन, जे० पी०, पूर्वोक्त लेखाङ्क ३ ६. वही, लेखाङ्क ५
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संडेरगच्छ का इतिहास
२०३ वि. सं. १३३१ वैशाख सुदि ९ सोमवार' कपर्दियक्ष की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-जैनमन्दिर, बयाना वि. सं. १३३७ चैत्र सुदि ११ शुक्रवार शान्तिनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि जिनालय बीकानेर वि. सं. ११४५ श्रावण वदि १३३ शान्तिनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खंभात
शालिसूरि [द्वितीय] के पट्टधर सुमतिसूरि [द्वितीय] हुए इनके द्वारा प्रतिष्ठापित जो जिन (तोर्थंकर) प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, उन पर वि. सं. १३३८ से वि. सं. १३८९ तक के लेख उत्कीर्ण है। इनका विवरण इस प्रकार है
१. वि. सं. १३३८ फाल्गुन सुदि १० गुरुवार
तीर्थङ्कर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-जैन मन्दिर, रत्नपुर, मारवाड़ २. वि. सं. १३४२ ज्येष्ठ सुदि ९ गुरुवार
पद्मप्रभ को प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-ऋषभनाथ जिनालय, हाथीपोल, उदयपुर ३. वि. सं. १३५० ज्येष्ठ वदि ५ ।
अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-जैन मन्दिर, ईडर ४. वि. सं. १३५७ ज्येष्ठ वदि ५ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख"
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर ५. वि. सं. १३७१ वैशाख सुदि ९ सोमवार
पाश्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर १. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ५५४ २. नाहटा, अगरचन्द-बीकानेर जैन लेख संग्रह, लेखाङ्क १८८ ३. अमीन, पूर्वोक्त-पृ० १२ एवं ३३ ४. नाहर, पूरनचन्द, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १७०८ ५. वही, भाग २, लेखाङ्क १८९२ ६. वही, भाग १, लेखाङ्क ५१९ ७. बुद्धिसागरसूरि-पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १४०९ ८. नाहटा, अगरचन्द-पूर्वोक्त, लेखाङ्क २५०
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२०४
शिवप्रसाद
६. वि. सं. १३७९ ज्येष्ठ वदि ७'
प्रप्ति स्थान-श्वेताम्बर जैन मन्दिर, रामघाट, वाराणसी ७. वि. सं. १३८८ वैशाख सुदि ५
भगवान् पार्श्वनाथ की पाणाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर ८. वि. सं. १३८९ ज्येष्ठ सुदि ८
भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
इस प्रकार स्पष्ट है कि सुमतिसूरि (द्वितीय ) दीर्घजीवी एवं प्रतिभाशीली जैन आचार्य थे। संडेरगच्छ से सम्बन्धित वि. सं. १३७११ एवं १३९२५ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम श्रीसूरि दिया गया है। श्रीसूरि कौन थे? क्या ये सुमतिसूरि (द्वितीय) से भिन्न कोई अन्य आचार्य हैं या स्थानाभाव से सूत्रधार ने सुमतिसूरि न लिखकर श्रीसूरि नाम उत्कीर्ण कर दिया ? यह विचारणीय है।
सुमतिसूरि (द्वितीय) के पश्चात उनके पट्टधर शान्तिसूरि (द्वितीय) संडेरगच्छ के नायक बने । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कोई भी प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, इनके गुरु सुमतिसूरि (द्वितीय) की अन्तिम ज्ञात तिथि वि. सं. १३८९ है, अतः ये उक्त तिथि के पश्चात ही अपने गुरु के पट्टधर हुए होगें। इसी प्रकार इनके शिष्य ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित सर्वप्रथम अभिलेख वि. सं. १४४७ का है, अतः इनका गच्छ नायकत्व का काल वि. सं. १३८९ से वि. सं. १४१७ के मध्य मान सकते हैं। इनके पट्टधर ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं का लेख आज उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार
वि. सं. १४१७ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति-स्थान–चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर वि. सं. १४२५ माघ वदि ७ सोमवार आदिनाथ पंचतीर्थी का लेख प्राप्ति स्थान-शांतिनाथ जिनालय, नमक मंडी, आगरा
१. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ४१५ २. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ३२२ ३. वही, लेखाङ्क ३३३ ४. मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०९९ ५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३३१ ६. वही, लेखाङ्क ४३७ ७. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १४८८
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संडेरगच्छ का इतिहास
२०५ ईश्वरसूरि (तृतीय) के पट्टधर शालिसूरि (तृतीय) हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमा लेख आज उपलब्ध हैं, जिनकाविवरण इस प्रकार है
वि. सं. १४२२ माघ वदि १२ मंगलवार' वासुपूज्य पंचतीर्थी का लेख, प्राप्ति स्थान-विमलनाथ जिनालय, कोचरों का चौक, बीकानेर वि. स. १४४६ आषाढ़ वदि १ पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्राप्ति स्थान-ऋषभनाथ जिनालय की भाण्डागारस्थ प्रतिमा, नाहटों की गवाड़, बीकानेर
शालिसूरि (तृतीय) के पट्टधर सुमतिसूरि (तृतीय) हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित वि. सं. १४४२ से वि. सं. १४६९ तक के जो प्रतिमा लेख आज उपलब्ध हैं, उनका विवरण इस प्रकार है
वि. स. १४४२ वैशाख सुदि ३ सोमवार प्राप्ति स्थान–अनुपूर्ति लेख, आबू वि. स. १४४३४ प्राप्ति स्थान-जैन मन्दिर, राजनगर वि. स. १४५९५ प्राप्ति स्थान-अजितनाथ देरासर, शेख नो पाडो, अहमदाबाद वि. स. १४६१ वैशाख सुदि शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान-चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर वि. स. १४६२ वैशाख सुदि ५ शुक्रवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
१. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १५७४ २. वही, लेखाङ्क १४७९ ३. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखाङ्क ६०० ४. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, पृ० ३८२, लेखाङ्क २० ५. मुनि बुद्धिसागर-पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १०४१ ६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखाङ्क २२८४ ७. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ६०४
.
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३.६
शिवप्रसाद
वि. सं. १४६५ तिथिविहीन मूर्तिलेख ' प्राप्तिस्थान — चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
वि. सं. १४६९ माघ सुदि ६ रविवार र वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता
सुमतिसूरि [ तृतीय ] के पट्टधर शांतिसूरि [ तृतीय ] हुए । सन्डेरगच्छ के वि. सं. १४७२ से १५१३ तक के प्रतिमा अभिलेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में इनका उल्लेख मिलता है; जिसका विवरण- इस प्रकार है
वि. सं. १४७२ फाल्गुन सुदि ९ शुक्रवार भगवान् पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - नवधेर का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली
वि. सं. १४७५ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान — चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
वि. सं. १४७६ मार्गसिर सुदि ३५
भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान — चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
वि. सं. १४८३ फागुण वदि ११० पद्यप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान - जैन मंदिर, चैलपुरी-दिल्ली एवं वीरजिनालय बीकानेर
वि. सं. १४८३ फागुण वदि १९ को इनके द्वारा प्रतिष्ठापितकुल ४ जिन प्रतिमायें वर्तमान में उपलब्ध हुई हैं । इनमें से श्रेयांसनाथ और पद्मप्रभ की प्रतिमायें आज चिन्तामणि जिनालय बीकानेर में संरक्षित हैं । "
१. नाहटा, पूर्वोक्त, क्रमाङ्क ६२५
२.
३.
४.
५.
६.
७.
नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ७५८ वही, लेखाक ६६४
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ५७७
वही, लेखाङ्क ६८२
नाहर, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४६८
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३३६
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ७२५ और ७२६
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संडेरगच्छ का इतिहास
वि. सं. १४८६ माघ सुदि ११ शनिवार' मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - सम्भवनाथ जिनालय, अजमेर वि. सं. १४९२ माघ वदि ५ गुरुवार वासुपूज्य प्रतिमा का लेख
प्राप्तिस्थान – चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर
वि. सं. १४९२ वैशाख सुदि ५३
प्राप्तिस्थान - ग्राम का जिनालय, चाँदवाड़, नासिक
वि. सं. १४९३ वैशाख सुदि ५४
शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, करेड़ा वि. सं. १४९३ तिथि विहीन प्राप्तिस्थान - जैनमंदिर, राणकपुर
वि. सं. १४९४ माघ सुदि ११ गुरुवार श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर
वि. सं. १४९४ माघ सुदि ११ गुरुवार
संभवनाथ पंचतीर्थी का उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान- महावीर जिनालय, वेदों का चौक, बीकानेर
वि. सं. १४९९ फागुण वदि २५ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
वि. सं. १५०१ माघ सुदि १० सोमवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान - सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
९.
नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ५४९
वही, भाग ३, लेखाङ्क २३०८
मुनि कान्तिसागर - जैन धातु प्रतिमा लेख, लेखाङ्क ८१
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १९३३
जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १८, पृ० ८९-९३
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ११४२
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३३९
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १८५९ तथा नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८१३
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ११४२
२०७
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२०८८
शिवप्रसाद
वि. सं. १५०१ ज्येष्ठ सुदि १०' धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-जैन मंदिर, लींच वि. सं. १५०३ ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रवार नमिनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-अनुपूर्ति लेख-आबू वि. सं. १५०३ तिथि विहीन प्राप्तिस्थान-चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात वि. सं. १५०५ वैशाख सुदि ६ सोमवार भगवान् शान्तिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि. सं० १५०५ माघ सुदि १५५ प्राप्तिस्थान-जैन मंदिर मालपुरा वि. सं. १५०६....."११ रविवार' प्राप्तिस्थान-गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, बम्बई वि. सं. १५०६ माघ वदि ५७ सुविधनाथ को धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-सेठ के बाग में स्थित जिनालय, उदयपुर वि. सं. १५०६ फाल्गुन सुदि ९ शुक्रवार' भगवान् कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर वि. सं. १५०६ फाल्गुन सुदि ९' भगवान् संभवनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-भाण्डागारस्थ जिन प्रतिमा, महावीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर
१. विजयधर्मसूरि-प्राचीन लेख संग्रह, लेखाङ्क १८९ २. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखाङ्क ६३५ ३. मुनि बुद्धिसागर-जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क ५५० ४. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क २२१ एवं नाहर, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०८१ ५. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ११, पृ० ३७५-८३ ६. मुनि कान्तिसागर, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०३ ७. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त लेखाङ्क २२० ८. नाहटा, पूर्वोक्त लेखाङ्क ९०७ ९. वही, लेखाङ्क १३१८
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वि. सं. १५०६ ( तिथि विहीन लेख ) " प्राप्तिस्थान - गौड़ी पार्श्वनाथ देरासर, मुम्बई वि. सं. १५०६ ( तिथि विहीन लेख ) 2 प्राप्तिस्थान – मुनिसुव्रतजिनालय, भरुच वि. सं. १५०६, ११ रविवार
प्राप्तिस्थान - गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पापधुनी, मुम्बई
वि. सं. १५०७ ज्येष्ठ सुदि ९ रविवार
भगवान् शांतिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - शीतल नाथ जिनालय, रिणी-तारानगर
संडेरगच्छ का इतिहास
वि. सं. १५०७ माघ सुदि ५५ शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान — चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर
वि. सं. १५०८ वैशाख वदि ४ शनिवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान — चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर
वि. सं. १५०८ वैशाख वदि ४ शनिवार ® शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान - चन्द्रप्रभ जिनालय; चूड़ी वाली गली, लखनऊ
वि. सं. १५०८ वैशाख सुदि ३५
सुपार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान - चौमुख जी देरासर, अहमदाबाद वि. सं. १५०८ ( तिथि विहीन लेख ) प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्तिस्थान - शांतिनाथ जिनालय, खंभात
१. जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ९, पृ० ५९४ ६००
२. मुनि बुद्धिसागर - पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३५३
३.
मुनि कान्तिसागर - पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०३
४.
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क २४५०
५. वही, लेखाङ्क ९१८
६. वही, लेखाङ्क ९२४
७.
८.
९.
२७
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १५४८
मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १४३
वही, भाग २, लेखाङ्क ७५१
२०९
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२१०
शिवप्रसाद
वि. सं. १५०९ माघ सुदि १०' वासुपूज्य की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-भाण्डागारस्थ धातु प्रतिमा, वीर जिनालय, वैदों का चौक बीकानेर वि. सं. १५१० फागुण वदि ८२ सुमतिनाथ की धातु पंचतीर्थी पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-शामला पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुर वि. सं. १५१० ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रवार प्राप्तिस्थान-जैन मंदिर, राणकपुर वि. सं. १५११ मार्गसुदि २ गुरुवार शीतलनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर वि. सं. १५१३ माघ वदि ९ गुरुवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-चिन्तामणि जी का जिनालय बीकानेर
जैसा कि हम पहले देख चुके हैं परिशिष्टपर्व की वि. सं. १४७९ की प्रतिलिपि की दाता प्रशस्ति में भी शांतिसूरि ( तृतीय ) का उल्लेख है।
शांतिसूरि (तृतीय) के पट्टधर ईश्वरसूरि ( चतुर्थ ) हुए, जिनके द्वारा वि. सं. १५१३ से वि. स. १५१९ तक की प्रतिष्ठापित प्रतिमायें उपलब्ध हैं । इनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १५१३ ज्येष्ठ वदि ११६ कुन्थुनाथ पंचतीर्थी पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-चन्द्रप्रभ जिनालय, रंगपुर ( बंगाल ) वि. सं. १५१५ माह ( माघ ) वदि ९ शुक्रवार नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान-आदिनाथ जिनालय, दिलवाड़ा ( आबू ) वि. सं. १५१७ ( तिथि विहीन लेख ) प्राप्तिस्थान-मुनिसुव्रत जिनालय, खंभात
१. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १३६१ २. मुनि विशालविजय, सम्पा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखाङ्क १६४
जैनसत्यप्रकाश-वर्ष १८, १०८९-९३ ४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखाङ्क २१८४ ५. नाहटा, पूर्वोक्त लेखाङ्क ९७६ । ६. नाहर पूरनचन्द, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०२५ ७. वही, भाग २, लेखाङ्क १९९१ ८. मुंनि बुद्धिसागर-पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ८५०
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संडेरगच्छ का इतिहास
वि. सं. १५१९ ( तिथि विहीन लेख ) 1 प्राप्तिस्थान - चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात
ईश्वरसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर शालिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि. सं. १५१९ से वि. सं. १५४५ तक प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं के लेखों का विवरण इस प्रकार है
--
वि. सं. १५१६ ( तिथि विहीन प्रतिमा लेख) सीमंधर स्वामी का प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान – जैन मन्दिर, खारबाड़ा, खंभात वि. सं. १५१९ ज्येष्ठ सुदि १३ सोमवार प्रतिष्ठा स्थान — जैनमन्दिर, पायधुनी, मुम्बई वि. सं. १५१९ ( तिथि विहीन प्रतिमा लेख ) ४ प्रतिष्ठा स्थान — जैनमन्दिर, गुलाबवाड़ी, मुम्बई वि. सं. १५२० ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार" शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिमा स्थान - तपागच्छ उपाश्रय, दिलवाड़ा वि. सं. १५२१ माह (माघ) सुदि ७ शुक्रवार धर्मनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - गौड़ी जी का मन्दिर, उदयपुर
वि. सं. १५२१ ( तिथि विहीन प्रतिमा लेख) ७
प्रतिष्ठा स्थान - दादापार्श्वनाथ जिनालय, नरसिंहजीनी पोल, बड़ोदरा
वि. सं. १५२६ ज्येष्ठ सुदि १३०
आदिनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्रतिष्ठा स्थान - चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर
वि.सं. १५२८ ( तिथि विहीन लेख )
प्राप्तिस्थान- - भग्न जैनमंदिर (राजनगर )
१. मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ५४०
२. वही, भाग २, लेखाङ्क १०६२
३
४.
५.
६.
७.
८.
९.
मुनि कान्तिसागर पूर्वोक्त, लेखाङ्क १६९ जैनसत्यप्रकाश - वर्ष ५, पृ० १६०-६५
नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, क्रमाङ्क २००२
विजयधर्मसूरि, संपा० प्राचीन लेख संग्रह, लेखाङ्क ३५४
बुद्धिसागर - पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १३४
नाहटा — पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०४६
जैन सत्यप्रकाश, वर्षं ९, पृ० ३७९, लेखाङ्क ३३
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२१२
शिवप्रसाद वि. सं. १५३२ चैत्र सुदि ३ गुरुवार' प्राप्तिस्थान-नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वि. स. १५३२ वैशाख वदि सोमवार' धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर वि. स. १५३५ माह (माघ) सुदि ३३ सुपार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि जिनालप, बीकानेर वि. स. १५३६ माह (माघ) सुदि ९४ आदिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-ऋषभदेव जिनालय के अन्तर्गत पार्श्वनाथ का मंदिर, नाहटों की गवाड़,
बीकानेर वि. स. १५३६ मार्गसिर सुदि १० बुधवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि. स. १५३६ ज्येष्ठ सुदि ५ रविवार' नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-भगवान् आदिनाथ का नूतन जिनालय, जयपुर वि. स. १५४५ ज्येष्ठ शुदि १२ गुरुवार आदिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान–गौडीजी का मंदिर, उदयपुर
शालिसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर सुमतिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि. सं. १५४५ से १५५९ तक प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमायें; इनके शिष्य एवं पट्टधर शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा वि. सं. १५५२ से वि. सं. १५७२ तक की जिन प्रतिमायें और शांतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित वि. सं. १५६० से १५९७ तक की जिन प्रतिमायें उपलब्ध हैं, अर्थात् विक्रम सम्वत् की सोलहवीं शती के छठे दशक में सुमतिसूरि (चतुर्थ), शांतिसूरि (चतुर्थ) और ईश्वरसूरि (पंचम) ये तीनों आचार्य विद्यमान थे । इससे प्रतीत होता है कि ये तीनों आचार्य शालिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य
१. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३८८ २. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०७६ ३. वही, लेखाङ्क १०९३ ।। ४. वही, लेखाङ्क १५१६ ५. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०९९ ६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १२१० ७. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४९३
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संडेरगच्छ का इतिहास और परस्पर गुरुभ्राता थे। ज्येष्ठताक्रम से इनका पट्टधर नाम निर्धारित हुआ था। शालिसूरि के पश्चात् ये क्रम से गच्छनायक के पद पर प्रतिष्ठित हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों का विवरण इस प्रकार है
सुमतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कोर्ण लेखों का विवरणवि. सं. १५४७ माघ सुदि १२ रविवार' वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-शत्रुञ्जय वि. सं. १५४९ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-पंचायती मंदिर, लस्कर-ग्वालियर वि. सं. १५५९ वैशाख वदि १ शनिवार पार्श्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-अजितनाथ देरासर, शेख नो पाड़ो, अहमदाबाद शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा प्रतिष्ठापित उपलब्ध प्रतिमाओं का विवरणवि. सं. १५५२ (तिथि विहीन प्रतिमा लेख)४ चन्द्रप्रभ स्वामी की चौबीसी पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-विमलनाथ जिनालय, चौकसीनी पोल, खंभात वि. सं. १५५५ ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार प्रतिष्ठा स्थान-नवखंडा पार्श्वनाथजिलानय, पाली वि. सं १५६३ माह (माघ) सुदि १५ गुरुवार मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-सुपार्श्वनाथ जिनालय, जयपुर वि. सं. १५७२ वैशाख सुदि पंचमो सोमवार शान्तिनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-आदिनाथ जिनालय, दिलवाड़ा, आबू
१. मुनि कंचनसागर-शत्रुञ्जयगिरिराजदर्शन, लेखाङ्क ४४९ २. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १३८३ ३. मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क १०४१ ४. वही, भाग २, लेखाङ्क ७९२ ५. मुनि जिनविजय-पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३८५ ६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ११९० ७. वही, भाग २, लेखाङ्क १९९२
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२१४
शिवप्रसाद
वि. सं. १५७२ वैशाख सुदि पंचमी सोमवार' धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-जैन मंदिर-नाणा
वि. सं. १५५० में रचित सागरदत्तरास' के रचयिता यही शान्तिसूरि (चतुर्थ) माने जा सकते हैं।
ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित उपलब्ध प्रतिमाओं का विवरणवि. सं. १५६० ज्येष्ठ वदि ८ बुधवार विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान–पार्श्वनाथ देरासर, नाडोल, वि. सं. १५६७ (तिथि विहीन लेख) विमलवसही की दीवाल पर उत्कीर्ण लेख वि. सं. १५८१ पौष सुदि ५ शुक्रवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
सं. १५८१ वर्षे पोष सुदि ५ शुक्रदिने उ० शीसोद्या गौत्र गोत्रजा वायण सा० पद्मा भा० चांग पु० दासा भा० करमा पु० कमा अषाई लावेता पातिः स्वश्रेयसे श्री अजितनाथ बिंब का०प्र० श्री संडेर गणे कवि श्री ईश्वरसूरिभिः ॥ श्री ॥ श्री चित्रकूटदुर्गे ।
वि. सं. १५९७ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-जैनमंदिर, नाडुलाई
ईश्वरसरि (पंचम) ने अपने गुरु द्वारा प्रारम्भ किये गये साहित्यसर्जन की परम्परा को जीवन्त बनाये रखा। इनके द्वारा रचित ललिताङ्गचरित्र ( रचना काल वि. सं. १५६१), श्रीपालचौपाई ( रचनाकाल वि. सं. १५६४ ) एवं सुमित्रचरित्र ( रचनाकाल वि. सं. १५८१)
१. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५, लेखाङ्क ३५८ २. देसाई-मोहनलाल दलीचन्द-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५२६ एवं जैन गूर्जर
कविओ, भाग १, पृ० ९१ ३. मुनि बुद्धिसागर-पूर्वोक्त, भाग १, लेखाङ्क ४५३ ४. आबू, भाग २, लेखाङ्क ५९ ५. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १४१६ ६. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३३६ ७. जैन गूर्जर कविओ (मोहनलाल दलीचन्द देसाई) द्वितीय संस्करण-संपा० डा० जयन्त कोठारी
भाग १, पृ० २२० ८. वही, पृ० २२२
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संडेरगच्छ का इतिहास
२१५ आदि' ३ रचनायें वर्तमान में उपलब्ध हैं। सुमित्रचरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने जीवविचार विवरण; षटभाषास्तोत्र ( सटीक ); नन्दिसेणमुनिगीत; यशोभद्रसूरिप्रबन्ध; मेदपाटस्तवन आदि की भी रचना की थी। ये रचनायें आज अनुपलब्ध हैं।
_ वि. सं. १५९७ में ईश्वरसूरि ( चतुर्थ ) के पश्चात वि. सं. १६५० में शान्तिसूरि के शिष्यों नयकुञ्जर और हंसराज द्वारा धर्मघोषगच्छीय राजवल्लभ पाठक द्वारा रचित भोजचरित्र की प्रतिलिपि तैयार करने का उल्लेख मिलता है।
वि. सं. १६८९ का एक लेख, जो पार्श्वनाथजिनालय में स्थित पुण्डरीकस्वामी की मूर्ति पर उत्कीर्ण है, भी संडेरगच्छ से ही सम्बन्धित है। परन्तु इसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता है। इसके पश्चात वि. सं. १७२८ और वि. सं. १७३२ के प्राप्त अभिलेख भी सन्डेरगच्छ से ही सम्बन्धित हैं । इनका विवरण इस प्रकार है
वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि १४५ देहरी का लेख लूणवसही, आबू वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि ११, देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि १५, देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि. सं. १७३२ वैशाख सुदि ७८, जैनमंदिर, छाणी
इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि १६वीं शताब्दी (विक्रमी ) के पश्चात ही इस गच्छ का गौरवपूर्ण इतिहास समाप्त हो गया, तथापि १७वीं-१८वीं शताब्दी तक इसका स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहा और बाद में यह तपागच्छ में विलीन हो गया।
( देखें-तालिका पृ० २१६-१६७ )
१. जैन गूर्जर कविओ ( द्वितीय संस्करण ), भाग १, पृ० २१९ २. वही, पृ० २१९
Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts. Muni Shree Punya
Vijayjis Collection; Ed. A. P. Shah, Vol II, No-4936 ४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १९६२ ५. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखाङ्क ३०९ ६. वही, भाग २, लेखाङ्क २९३ ७. वही, भाग २, लेखाङ्क २९१ ८. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ५४० ९. त्रिपुटी महाराज-जेन परम्परानो इतिहास, भाग १, पृ० ५५८-६९
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साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित संडेरगच्छीय आचार्यों के परम्परा को तालिका
ईश्वरसूरि (प्रथम) [संडेरगच्छ के आदि आचार्य] यशोभद्रसूरि [संडेरगच्छ के महाप्रभावक आचार्य] इन्होंने संवत् १०३९/ई० सन् ९८२ में पार्श्वनाथ की
। प्रतिमा प्रतिष्ठापित की जो वर्तमान में करेड़ा (प्राचीन करहेटक) में स्थित पार्श्वनाथ
| जिनालय में प्रतिष्ठित है।] श्यामाचार्य [यशोभद्रसूरि के शिष्य] शालिभद्रसूरि (प्रथम) [वि.सं.११८१-१२१५ प्रतिमालेख] सुमतिसरि (प्रथम) [वि. सं. १२३७-१२५२ , ] शांतिसूरि (प्रथम) [वि. सं. १२४५-१२९८ , ] ईश्वरसूरि (द्वितीय) [वि. सं. १३०७-१७ शालिसूरि (द्वितीय) [वि. सं. १३३१-४५ , ] इनके उपदेश से वि. सं. १३२४ में महावीर
चरित्र की प्रतिलिपि तैयार की गयी। सुमतिरि (द्वितीय) [वि. सं. १३३८-८९ , ] शांतिसूरि? [इनके बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है] ईश्वरसूरि (तृतीय) [वि. सं. १४१७-१४२५ प्रतिमालेख ] शालिसूरि (तृतीय) [वि. सं. १४२२-१४४६ , ] सुमतिसूरि (तृतीय) [वि. सं. १४४२-१४६९ , ] शांतिसूरि (तृतीय) [वि. सं. १४७२-१५०६ , ] इनके शिष्य विनयचन्द्र ने वि. सं. १४७९ में
परिशिष्टपर्व की प्रतिलिपि तैयार की
शिवप्रसाद
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________________ ईश्वरसूरि ( चतुर्थ ) [ वि० सं० 1513-1519 प्रतिमा लेख ] शालिसूरि ( चतुर्थ ) [ वि० सं० 1519-1545 , ] सुमतिसूरि ( चतुर्थ ) [ वि० सं० 1545-1559 , ] शांतिसूरि ( चतुर्थ ) [ वि० सं० 1552-1572 , ] 1 [वि० सं० 1550 में सागरदत्तरास के रचयिता ] ईश्वरसूरि ( पंचम ) [ वि० सं० 1560-1595 प्रतिमालेख ] ललिताङ्गचरित, श्रीपालचौपाई, सुमित्रचरित्र आदि के रचयिता शालिसूरि ( पंचम ) [ कोई प्रतिमा लेख प्राप्त नहीं ] सुमतिसूरि ( पंचम ) [ ] शांतिसूरि (पंचम)[ / [इनके दो शिष्यों नयकुञ्जर और हंसराज ने वि० सं० 1650 में भोजचरित / की प्रतिलिपि की ] संडेरगच्छ का इतिहास ? [वि० सं० 1689 प्रतिमालेख है परन्तु किसी मुनि | आचार्य का उल्लेख नहीं ] [वि० सं० 1728 एवं 1732 के प्रतिमालेखों में भी प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं ] वि० सं० 1732 के पश्चात् इस गच्छ का कोई भी साहित्यिक अथवा आभिलेखिक विवरण नहीं मिलता। :