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शिवप्रसाद
कल्पसूत्र के वि० सं० १५८६ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति'
इस प्रशस्ति में संडेरगच्छीय आचार्यों की जो गुर्वावली मिलती है, वह इस प्रकार है
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यशोभद्रसूरि
मुनिगंगा (वि. सं. १५८६ )
इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि शालिसूरि के प्रशिष्य एवं हर्षसागर के शिष्य मुनि गंगा के पठनार्थ एक श्रावक द्वारा कल्पसूत्र की प्रतिलिपि तैयार करायी गयो । हर्षसागर और मुनिगंगा शालिसूर के संभवत: पट्टधर नहीं थे, अतः उनका नाम परिवर्तित नहीं हुआ । इस प्रशस्ति की गुर्वावली में भी चार नामों के पुनरावृत्ति की झलक है, परन्तु इन आचार्यों के किन्ही विशिष्ट कृत्यों यथा साहित्य रचना आदि की कोई चर्चा नहीं है ।
भोजचरित्र के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति
इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि-सुमतिसूरि-शांतिसूरि का उल्लेख करते हुए शांतिसूरि के शिष्य नयनकुञ्जर और हंसराज द्वारा भोजचरित्र की प्रतिलिपि करने का उल्लेख है ।
१.
शालिसरि I "
सुमतिसूरि
शांतिसूर
ईश्वरसूरि
1
शालिसूरि
हर्ष सागर
२.
Catalogue of Sanskrit & Praprit Manuscripts In Jesalmer Collection--- Compiled By Muni Shree Punya Vijayaji, No. 1398.
श्रीसंडेरगच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने तत्पट्टे श्रीशालिसूरिः, तत्पट्टे श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टे श्री शान्तिसूरयः । तदन्वये श्रीशान्तिसूरिविजयराज्ये वा० श्रीनइ (य) कुंजर द्वितीयशिष्यमु० हंसराजः (जेन) श्रीभोजचरित्रं सम्पूर्ण कृतम् ॥ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts-Muni Punyavijayjis Collection-Ed by A. P. Shah Part-II No-4936.
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