Book Title: Sandergaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 2
________________ संडेरगच्छ का इतिहास १९५ वश्यकविवरण ( आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित योगशास्त्र का एक अध्याय ) की प्रतिलिपि संडेरगच्छीय गणि आसचन्द्र के शिष्य पंडित गुणाकर को दान में देने का उल्लेख है। परन्तु गणि आसचन्द्र संडेरगच्छ के किस आचार्य के शिष्य थे, यह ज्ञात नहीं होता है। संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यक साक्ष्य है, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अन्तर्गत महावीरचरित्र की दाता प्रशस्ति ( लेखन काल वि. सं. १३२४ ई० सन् १२६७)' इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि का महान् प्रभावक आचार्य के रूप में उल्लेख है। यह प्रशस्ति खंडित है; अतः इसमें यशोभद्रसूरि के बाद के आचार्य का नाम (जो शालिसूरि होना चाहिए ) नहीं मिलता, फिर आगे सुमतिसूरि का नाम आता है और इन्हें दशवैकालिकटीका का रचयिता बताया गया है। इनके पश्चात् शान्तिसूरि और फिर ईश्वरसूरि के नाम आते हैं। प्रशस्ति में आगे दाता श्रावक परिवार की विस्तृत वंशावली दी गयी है। इसी श्रावक परिवार के एक सदस्य द्वारा कल्पसूत्र एवं कालकाचार्यकथा की प्रतिलिपि करायी गयी। यद्यपि इनकी दाताप्रशस्ति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, फिर भी इस प्रशस्ति को लिखवाने वाला श्रावक उक्त ( श्रावक) परिवार का ही एक सदस्य होने से इसका रचनाकाल वि० सं० को चौदहवीं शताब्दी का मध्य माना जा सकता है। इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि के पश्चात् शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और फिर ईश्वरसूरि का नाम आता है और अन्त में उसी श्रावक परिवार की वंशावली दी गयी है। इस प्रशस्ति से यह सिद्ध हो जाता है कि संडेरगच्छ में इन्हीं चार पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति होती रही। इस तथ्य का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यक प्रमाण है। परिशिष्टपर्व के वि० सं० १४७९।ई. सन् १४२२ में प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति इस प्रशस्ति के अनुसार संडेरगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि के संतानीय शांतिसूरि के शिष्य मनि विनयचन्द्र ने श्री सोमकलश के उपदेश से वि० सं० १४७९ ज्येष्ठ सुदि प्रतिपदा मंगलवार को उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि तैयार की। वि. सं. १४७९ में आचार्य शांतिसूरि संडेरंगच्छ के प्रमुख थे, ऐसा इस प्रशस्ति से स्पष्ट होता है। 1. Muni Punya Vijaya-Catalogue of Palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay pp. 306-7. 2. 3. Muni Punya Vijaya-पूर्वोक्त क्रमांक ५२, पृ० ७८. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts-Muni Punya Vijayajis Collection By A. P. Shah, Part II, No. 3790. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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