Book Title: Sandergaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 7
________________ २०० प्रतिष्ठापक आचार्य - सुमतिसूरि; प्रतिष्ठास्थल - बड़ा जैन मन्दिर, नाडोल शिवप्रसाद वि. सं. १२५१ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार ' आदिनाथ की परिकर युक्त प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - जैन मन्दिर, बोया, मारवाड़ वि. सं. १२५२ माघ वदि ५ रविवार २ शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ की प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख वर्तमान प्रतिष्ठा स्थान - सोमचितामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार में बोधकाचार्य के शिष्य सुमतिसूरि द्वारा वि. सं. १२२० में रचित दशकालिक टीका उपलब्ध है । बोधकाचार्य और उनके शिष्य सुमतिसूरि किस गच्छ के थे, यह ज्ञात नहीं होता है । जैसा कि पहले देख चुके हैं, सन्डेरगच्छीय शालिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर वि. सं. ११८१ से वि. सं. १२१५ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनके शिष्य सुमतिसूरि ( प्रथम ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२३६ से १२५२ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि वि. सं. १२१५ के पश्चात् ही सुमतिसूरि अपने गुरु के पट्ट पर आसीन हुए । ऐसी स्थिति में वि. सं. १२२० में दशवेकालिकटीका के रचनाकार सुमतिसूरि को संडेरगच्छीय सुमतिसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं प्रतीत होती है । यशोभद्रसूरि के तृतीय संतानीय एवं शान्तिसूरि (प्रथम) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर वि. सं. १२४५ से वि. सं. १२९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । नाडोल के चाहमान नरेश का मन्त्री और महामात्य वस्तुपाल का अनन्य मित्र यशोवीर इन्हीं शान्तिसूरि का शिष्य था । यशोवीर ने आबू स्थित विमल सही में जो देवकुलिकायें निर्मित करायीं, उनमें प्रतिमा प्रतिष्ठापन का कार्य शान्तिसूरि ने ही सम्पन्न किया था। इसी कालावधि वि. सं. १२४५ - १२९८ के मध्य वि. सं. १२६६ एवं वि. सं. १२६९ में प्रतिष्ठापित कुछ प्रतिमायें जो संडेरगच्छ से सम्बन्धित हैं, प्रतिमा १. २. 3. विजयधमंसूरि - पूर्वोक्त, लेखाङ्क २६ अमीन, जे० पी० - पूर्वोक्त, पृ० ३२-३३ Catalouge of Sanskrit & Prakrit Mss., Jesalmer Collection P-30-31 नोट: - पूना और खंभात के ग्रन्थ भण्डारों में भी दशवैकालिकटीका की प्रतियां विद्यमान हैं । जिनरत्नकोश पृ० १७० द्रष्टव्य — Discriptive Catalouge of the Govt. Collection of Mss. Vol. XVIII, Jaina Literature & Philosophy, Part III No-716; Catalouge of Palm-Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, Part II, P- 305; जिनरत्नकोश पृ० १७०; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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