Book Title: Sandergaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 19
________________ २१२ शिवप्रसाद वि. सं. १५३२ चैत्र सुदि ३ गुरुवार' प्राप्तिस्थान-नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वि. स. १५३२ वैशाख वदि सोमवार' धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि जिनालय, बीकानेर वि. स. १५३५ माह (माघ) सुदि ३३ सुपार्श्वनाथ प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-चिन्तामणि जिनालप, बीकानेर वि. स. १५३६ माह (माघ) सुदि ९४ आदिनाथ की धातु प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठा स्थान-ऋषभदेव जिनालय के अन्तर्गत पार्श्वनाथ का मंदिर, नाहटों की गवाड़, बीकानेर वि. स. १५३६ मार्गसिर सुदि १० बुधवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि. स. १५३६ ज्येष्ठ सुदि ५ रविवार' नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान-भगवान् आदिनाथ का नूतन जिनालय, जयपुर वि. स. १५४५ ज्येष्ठ शुदि १२ गुरुवार आदिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान–गौडीजी का मंदिर, उदयपुर शालिसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर सुमतिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि. सं. १५४५ से १५५९ तक प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमायें; इनके शिष्य एवं पट्टधर शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा वि. सं. १५५२ से वि. सं. १५७२ तक की जिन प्रतिमायें और शांतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित वि. सं. १५६० से १५९७ तक की जिन प्रतिमायें उपलब्ध हैं, अर्थात् विक्रम सम्वत् की सोलहवीं शती के छठे दशक में सुमतिसूरि (चतुर्थ), शांतिसूरि (चतुर्थ) और ईश्वरसूरि (पंचम) ये तीनों आचार्य विद्यमान थे । इससे प्रतीत होता है कि ये तीनों आचार्य शालिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य १. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ३८८ २. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखाङ्क १०७६ ३. वही, लेखाङ्क १०९३ ।। ४. वही, लेखाङ्क १५१६ ५. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १०९९ ६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १२१० ७. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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