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एकादशं प्रकाश अर्थ-जिस प्रकार कोई विदेश में रहने वाला मनुष्य विपुल धन अर्जित करता है परन्तु जब स्वदेशको आनेकी इच्छा करता है तो उस देशके नियमानुसार वह उस धन को साथ लाने में समर्थ नहीं हो पाता। इस दशामें वह संक्लिष्ट चित्त होता हुआ बहुत दुःखी होता है। इसी प्रकार यह पुरुष अपने प्रयत्नसे बहुत धनका संचय करता है परन्तु जब वह परलोकको जाना चाहता है तब इस लोकके नियमानुसार उस धनको साथ ले जाने में समर्थ नहीं हो पाता, इस स्थितिमें वह दुःखसे संतप्त होता हआ रोता है, क्या करूं? महान् कष्ट सहकर मैंने यह धन उपाजित किया है परन्तु साथ ले जाने में समर्थ नहीं हैं, मेरा परिश्रम व्यर्थ गया। इस प्रकार विलाप करते हुए उस पुरुषको देखकर कोई दयाल विदेश का राजा उसके लिये एक पत्र देता है तथा कहता है कि तुम इस पत्र को लेकर अपने नगर जाओ, यह धन तुम्हें वहाँ अवश्य हो मिल जायेगा। इसी प्रकार दयाल आचार्य परलोक को जाने के लिये इच्छक पुरुष को सल्लेखना नामक पत्र देकर बार-बार कहते हैं कि तुम इस पत्रके प्रभावसे यह धन परलोको अवश्य ही प्राप्त कर लोगे, इसमें संशय नहीं है। तात्पर्य यही है कि यदि तुम इस लोक का बैभव परलोकमें ले जाना चाहते हो तो सल्लेखना करो।। २-११ ॥ आगे संन्यास सल्लेखना कबकी जातो है, यह कहते हुए उसके भेद बताते हैं
उपसर्गप्रतीकारे भिक्षे चापिभीषणे । च्यापाधापतिते घोरे संन्यासो हि विधीयते ॥ १२ ॥ संन्यासस्त्रिविधः प्रोक्तो जैनागमविशारवः। प्रथमो भक्तसंख्यानो द्वितीयश्चेङ्गिनीमृतिः ॥ १३ ॥ प्रायोपगमनं चान्त्यं कर्मनिर्जरणक्षमम् । यत्र यमनियमाभ्यामाहारस्त्यज्यते मात् ॥ १४॥ बंधावत्यं शरीरस्य स्वस्य यत्र विधीयते । स्वेन वा च परैर्वापि सेवाभावसमुद्यते। ॥ १५॥ ज्ञेयः स भक्तसंख्यातः साध्यः सर्वजनैरिह। जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदात् स विविधो गतः ।। १६ ।। जधन्य समयो यो घटिकाद्वय सम्मितः। अन्त्यो द्वादश वर्षात्मा मध्यमोऽनेकपा स्मृतः ॥ १७ ।।