Book Title: Samyak Charitra Chintaman
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ परिशिष्ट १७६ बनाया आहार पूति दोषसे दूषित माना जाता है। इसी तरह ओखलो आदि के विषयमें जानना चाहिये । ४. मिश्र बोष--जो अन्न; गृहस्थों और पाखण्डियोंको साथ-साथ दिया जाता है, वह मिश्र दोष है। ५. स्थापित दोष-जिस ननमें भान आदि बना है उसमे निकाल कर चौकाके बाहर अपने घर में रखना या अन्य के घरमें पहुंचाना स्था. पित दोष है। ६. बलि दोष-यन, नाग आदिके लिये जो नैवेद्य तैयार किया गया है, वह बलि कहलाता है। इस बलिमेंसे कुछ आहार साधुको देना बलि दोष है। ५. प्रालित दोष- अभ्य तिथियोंमें देने योग्य आहारको पूर्व तिथियोंमें देना और पूर्वतिथिमें देने योग्य आहार आगामो तिथिमें देना अथवा पूर्वाह्र में देने योग्य वस्तु अपराह्न में देना और अपराह्न में देने योग्य वस्तु प्रावर्तित पूर्वाह्नमें देना प्रावर्तित दोष है। यह प्राभृत दोष भो कहलाता है। ८. प्रावुष्कार दोष--बर्तन, भोजन तथा स्थान आदिका दिखावा कर बनाया हुआ आहार प्रादुष्कार दोषसे दूषित माना गया है। ९. क्रीत कोष--साधुको आया देख अपने यहाँ कमी होनेपर घी, दुध, फल आदिको तत्काल खरोदकर देना, क्रोत दोष है। १०. प्रामष्य बोष-अपने घर साधके आने पर पड़ोसीके यहाँसे उधार लेकर किसी वस्तुको देना प्रामृष्य दोष है, इसे ऋण दोष भी कहते हैं। ११. परिवर्तक बोष-साधुके आनेपर अपने घर मोटे चावलोंसे बना भात आदि आहार पड़ोसीके धरसे अच्छे चावलोंका भात आदि बदल कर देना परिवर्तक या परावर्तित दोष है। १२. अभिघट दोष-जिस चौकामें साधु गये हैं उस चौकाका आहार तो ग्राह्य है ही उसके अतिरिक्त सरल पंक्तिमें स्थित तोन या सात घरसे आया हुआ आहार भो ग्राह्य है। इससे अधिक दूरोसे आया आहार ग्राह्य नहीं है । वह अभिघट दोषसे दूषिस कहलाता है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234