Book Title: Samipya 1991 Vol 08 Ank 01 02
Author(s): Pravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में यह सबसे अधिक प्राचीन माना जाता है । मूर्ति में वानरमुख हनुमान का दायाँ पैर पादपीठ पर रखा है । ऊपर उठा हुआ बायाँ चरण पद्मपत्र पर टिका है । नीचे सपत्नीक अपस्मार पुरुष दिखाया गया है । हनुमान का ऊपर उठा हुआ दायाँ हाथ सिर पर है । बायें हाथ को मोड़कर वक्ष पर रखा है । लंबी लांगूल ऊपर मुड़ी हुई दिखाई गई है । हनुमान के गले में लंबी वनमाला शोभित है । उनके दाई ओर कटि के समीप अंजलिमुद्रा में हाथ जोड़ कर बैठे हुए भक्त की लघु आकृति है । खजुराहो में हनुमान की दूसरी मूर्ति वर्तमान " वनखंडी महादेव" मंदिर के भीतर है । उस मूर्ति का निर्माण-काल ई. दसवीं शती है । पहली मूर्ति के समान यह भी वीरभाव में है । उसमें नीचे अपस्मार पुरुष सपत्नीक न होकर, अकेला है। मूर्ति में लंबी लांगूल नहीं दिखाई गई । हनुमान का मुख सामने की ओर हैं, पृष्ठभाग नहीं दिखाया गया । तीसरी प्राचीन मूर्ति खजुराहो गाँव के पास निनोरा ताल के किनारे बनी एक मढिया में सुरक्षित है । उसकी रचना पहली दोनों प्रतिमाओं जैसी है । ये तीनों प्रतिमाएँ पूजा में हैं। उन पर चढ़ी हुई सिंदूर की पर्तो से उनकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। हनुमान की इन स्वतंत्र मूर्तियों के अलावा खजुराहो के एक शिलापट्ट पर श्रीराम तथा सीताजी के साथ हनुमान दिखाये गये हैं। वह शिलापट्ट पार्श्वनाथ मंदिर के बहिर्भाग पर लगा है । उसमें राम के बाएँ पार्श्व में सीता खड़ी हैं। दाईं ओर खड़े हुए हनुमान की वानरमुख लघु आकृति बनी है । वे करण्ड मुकुट धारण किये हैं । उनके मस्तक पर श्रीराम अपना दक्षिणाधः कर "पालित मुद्रा" में रखे हुए हैं। इस शिलापट्ट का निर्माणकाल ईसवीं दसवीं शती है। मुख्य राम-परिवार के अंग के रूप में हनुमान भारतीय मूर्तिकला में अब तक प्रतिष्ठित हो चुके थे । मध्यप्रदेश में मल्लार नामक स्थल ( जिला बिलासपुर ) एक उल्लेखनीय कला केन्द्र है । वहाँ शुंगकाल से लेकर तेरहवीं शती तक विभिन्न धर्मों से संबंधित कलाकृतियों का निर्माण बड़े रूप में हुआ । हनुमानजी की एक विशेष प्रतिमा वहीं मिली है जिसमें उनका भंगिमायुक्त वीरभाव दर्शनीय है । दायाँ हाथ ऊपर उठा हुआ है। बायाँ कमर में खोंसी हुई कटार के ऊपर है। उनका बायाँ पैर अपस्मार नारी की पीठ पर है । नारी आकृति के नीचे अपस्मार पुरुष बैठा है । हनुमानजी का नीचे गिरता हुआ उत्तरीय आकर्षक ढंग से दिखाया गया है। वे करंड मुकुट, हार, एकावली, चौलड़ी मेखला तथा दुहरे नूपुर पहने हैं । मेखला से लटकती हुई क्षुद्रघंटिकाएँ दिखाई गई हैं । कानों में गोल कुंडल तथा हाथों में अंगद और कटक है । मस्तक के पीछे दुहरा प्रभामंडल दिखाया गया । हनुमानजी की मूंछे विजयी योद्धा की तरह ऊपर तनी हुई हैं। हाल में इन पंक्तियों के लेखक को सागर जिला के कानगढ़ नामक स्थान में हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति देखने को मिली । दुर्भाग्य से उसे तोड़ कर उसके दो भाग कर दिये गये । हनुमान के बायें पैर के नीचे अपस्मार पुरुष है । हनुमानजी का मुख खुला हुआ है, जिससे उनकी दुहरी दंतपंक्ति साफ दिखाई देती है । सिर पर मुकुट शोभायमान है । दायां हाथ वक्ष के सामने है । मुकुट के अलावा वे अन्य अनेक आभूषण धारण किये हैं । भारत के अन्य अनेक स्थलों में हनुमानजी की बहुसंख्यक कलाकृतियाँ मिली हैं । वे पत्थर, कांसा, चांदी, आदि की बनी हैं । दक्षिण भारत में धातु, चंदन तथा हाथीदांत की बनी हुई हनुमान की बहुसंख्यक पुरातत्व में हनुमान ] [ 105 For Private and Personal Use Only

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