Book Title: Samipya 1991 Vol 08 Ank 01 02
Author(s): Pravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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वैदिक निष्क : सिक्काशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में
रेनू लाल*
भारतवर्ष में सिक्के की प्राचीनता ई. पू. छठी शती मानी गई है। इस समय से पूर्व भी विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा तो अवश्य ही प्रचलित थी। लेकिन साहित्य में कहीं भी इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।
वैदिक-काल से ही भारत में 'निष्क' और 'हिरण्यपिण्डक' नामक धातु की मुद्राएँ प्रचलित थीं। ऋग्वेद के अनुसार रुद्र ने 'विश्वरूप निष्क' धारण कर रखा था ।२।।
'विश्वरूप' के आधार पर डॉ. भण्डारकर का मत है कि ये सिक्का है, क्योंकि 'रूप' अथवा 'विश्वरूप' सिक्कों पर चिह्न अथवा आकृति के सूचक शब्द हैं ।।
'रूप्य' अथवा 'रूप' शब्द का प्रयोग पाणिनि की अष्टाध्यायी५ में, महावग्ग तथा खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेखों में भी हुआ है।
लेकिन इन सभी अभिलेखों में 'रूप' अथवा 'रूप्य' का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में हुआ था और निश्चित रूपसे इसे सिक्का नहीं माना जा सकता है।
डॉ. उपेन्द्र ठाकुर भण्डारकर के मत से सहमत नहीं हैं। इनके अनुसार न तो वैदिक साहित्य के टीकाकारों और न तो बुद्धघोष (महावग्ग का टीकाकार जिसका समय पाँचवी शती था) के पहले के किसी भी टीकाकार ने 'रूप' का प्रयोग चिह्न के रूप में नहीं किया है।
कौटिल्य के अनुसार 'रूपदर्शक' सिक्कों की जांच करता था । मुद्राको विनिमय के माध्यम के रूप में तथा खजाने की कानूनी मुद्रा के रूप में नियन्त्रित रखता था 'लक्षणाध्यक्ष वास्तव में टंकशाला का अध्यक्ष होता था। इससे स्पष्ट होता है कि 'रूप' सिक्के के लिये तथा लक्षण चिह्न के लिये प्रयोग होता था।
पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी भारत के प्राचीनतम सिक्के के विषय में उल्लेख मिलता है।
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल १२ ने पाणिनि की अष्टाध्यायी में प्रयुक्त 'तेन क्रीतम् ' तथा 'तद् अर्हति' के आधार पर सिक्कों की प्राचीनता दर्शाने का प्रयास किया है।
ऋग्वेद 13 में ही एक स्थान पर एक गायक को पुरस्कार के रूप में १०० निक प्राप्त होने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट होता है कि निष्क का मुद्रा के रूप में प्रचलन था ।
शतपथ ब्राह्मण१४ में भी ‘स्वर्ण निष्क' का उल्लेख मिलता है। जातकों में निष्क'१५ का उल्लेख सोने के सिक्के के रूप में हुआ है। पाणिनि ने ३ सूत्रों में स्वर्ण निष्क का उल्लेख किया है।
* शोध छात्रा, भो. जे. विद्याभवन, ऐ/6 आविष्कार सोसायटी, बोपल, अहमदाबाद वैदिक निष्क : सिक्काशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में ]
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