Book Title: Samipya 1991 Vol 08 Ank 01 02
Author(s): Pravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काशिका में 'निष्क माला' का उल्लेख है अर्थात् निष्क कण्ठाभरण ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि निष्क सोने का सिक्का था । पाद केवल सोने के सिक्के का ही अवगुणज (mutiple) नहीं था33 वरन् चाँदी के सिक्कों का भी अवगुणज था ।
ब्राह्मण तथा उपनिषद् काल में भी 'निष्क' को सोने का सिक्का नहीं माना जाता था क्योंकि न तो उस पर कोई चिह्न होता था और न ही आकृति३४ । निष्क विनिमय की रूप इकाई होती थी जिसकी तौल निश्चित होती थी। अधिकतर दक्षिणा देने के लिये निष्क का प्रयोग होता था । ३५
जातक काल में 'निष्क' का प्रयोग व्यापारियों द्वारा भी विनिमय के माध्यम के रूप में होने लगा था। निष्क शब्द की व्युत्पत्ति:
निष्क शब्द की व्युत्पत्ति के विषय में भी विद्वानों में अत्यंत मतभेद है। 'निष्क' शब्द की समानता पुराने आयरिश शब्द नैस्क' (Nasc) जिसका अर्थ अंगूठी होता है, से की जाती है । जर्मन भाषा में 'नस्क' (Nusc) का अर्थ कंगन होता है । तमिळ भाषा में नकाई (Jewel), मलयाळम में 'नक' (Jewel) हिन्दी और बंगाली में 'नग' का सम्बन्ध प्राकृत तथा पालि के 'निक्ख' तथा संस्कृत के निष्क से नहीं बताया जा सकता है।
काशकृत्स्न धातु वृत्ति में निष्क का उल्लेख है । अतः निष्क की उत्पत्ति इण्डो यूरोपियन मानते हुए निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि निष्क का प्रयोग मूल्यवान आभूषण के रूप में ही होता था ।
ऋग्वेद में भी 'निष्क ग्रीवा' ३७ तथा 'निष्क कृणावहे'३८ का उल्लेख है। जिससे स्पष्ट होता है कि निष्क एक कष्ठाभरण था तथा निष्कम विश्वरूप उसके रूप में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद३८ में ही निष्क, पदक (Pendant) तथा हार (Necklace) के लिये ही प्रयुक्त हुआ है तथा इनके आकार और तौल का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है।
मनुस्मृति के अनुसार निष्क ४ सुवर्णों के बराबर होता था जिसको तौल ३२. रत्ती अर्थात् ५६० ऐन होती थी। . पालि साहित्य के अनुसार निष्क १५ सुवर्णों की तौल के बराबर होता था अर्थात् निष्क को तौल
१२०० रत्ती (२१०० ग्रेन) के बराबर होती है । - अत: संस्कृत तथो पालि ग्रंथों में उल्लिखित तौल में बहुत अन्तर होने के कारण ये भ्रमपूर्ण है। निष्कर्ष रूप में, साहित्य में कहीं भी 'निष्क पदक' (Pendant) की तौल अथवा माप का उल्लेख नहीं मिलता है। आकार:
निष्क के आकार के विषय में केवल ऋग्वेद में ही उल्लेख है। जिसमें देवी प्रतिमा को कौड़ियों की माला पहने हुए बताया गया है४० । (चतुष्कपदी युवतिः सुकेशधृत-प्रतीका वायुनानीवस्ते)
प्राचीनकाल में धातु से कौड़ी के आकार के चम्मच तथा प्लेट बनाये जाते थे। स्टेन ने लगभग ४ मातृकाओं के कण्ठाभरण में कौड़ी का प्रयोग 'पव' (Pendant) के रूप में देखा है।
डा. पाठक ने ऋग्वेद में उल्लिखित 'चतुष्कपदी' को चार कौड़ियों वाला कण्ठाभरण माना है। इनके मतानुसार निष्क का प्रयोग कौड़ी के ही होता था। क्योंकि (१) वैदिक युग में कौडी का प्रयोग पदक (Pendant)४२ के रूप में होता था । (२) कौडी तथा शतमान की तौल एक समान है। (३) कौडी ऐतिहासिक स्थलों (Proto-historic-sites) से भी प्राप्त हुई है जिसमें त्रि-वृत्त बना है जो कि अत्यन्त प्राचीन चिह्न है। बैदिक निष्क: सिक्काशनके परिप्रेक्ष्यमें
1 109
For Private and Personal Use Only