Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Sukhlal Sanghvi
Publisher: Mumbai University

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Page 140
________________ ચેથા વ્યાખ્યાનની પાદટીપે ૧૨૯ १. शून्यागारे समरसपूतस्तिष्ठन्नेकः सुखमवधूतः । चरति हि नमस्त्यक्त्वा गर्व विन्दति केवलमात्मनि सर्वम् ॥ -अवधूतात। स. १, सौ. ७३ ७. 'विसुभि' : धूत गनिस, पृ. ४०. ८. मीर अवधू कुदरतकी गति न्यारी । रंक निवाज करे वह राजा भूपति करै भिखारी ॥ १२ ॥ अवधू छोडहु मन बिस्तारा सो पद गहो जाहि ते सद्गति पार ब्रह्म ते न्यारा ॥१३॥ अवधू अन्ध कूप अँधियारा या घट भीतर सात समुन्दर याहिमें नही नारा ॥ ७७ ।। अवधू भूलेको घर लावै सो जन हमको भावै । घरमें जोग भोग घर ही में घर तजि बन नहिं जावै ।।१११।। -कबीर वचनावली, द्वितीय खण्ड આનંદધન अवधू नट नागरकी बाजी, जाण न बांभण काजी ॥ ५ ॥ अवधू क्या सोवे तन मठमें, जाग विलोकन घटमें ॥ ७ ॥ अवधू राम राम जग गावे, बिरला अलख लगावे ॥ २७ ॥ –શ્રી મોતીચંદ ગિ. કાપડિયા સંપાદિત શ્રી આનંદઘનજીનાં પદો ૯. “ભગવતી’ માટે જુઓ પ્રસ્તુત વ્યાખ્યાનનું ઉપર આપેલું टि५५] २; ५२iत सी, 'पन्नभलारिसयरिय' पृ. ४०; 'सुवडिल' पृ. ११३. ૧૦. “મહાભારત' માટે જુઓ પ્રસ્તુત વ્યાખ્યાનનું ટિપ્પણ ૨.

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