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(१) सिंहलसुत चौ० का कथासार
सिंहलद्वीप के नरेश्वर सिंहल की रानी सिंहली का पुत्र सिंहलसिंह कुमार सूरवीर गुणवान और पुण्यात्मा था। वह माता पिता का आज्ञाकारी, सुन्दर तथा शुभ लक्षण युक्त था । एक बार बसंत ऋतु के आने पर पौरजन क्रीड़ा के हेतु उपवन में गए, कुमार भी सपरिकर वहाँ उपस्थित था। एक जंगली हाथी उन्मत्त होकर उधर आया और नगरसेठ धनदत्त की पुत्री जो खेल रही थी, अपने सुण्डादण्ड में ग्रहण कर भागने लगा। कुमारी भयभीत होकर उच्च स्वर से आक्रन्द करने लगी-मुझे बचाओ! बचाओ ! यह दुष्ट हाथी मुझे मार डालेगा 'हाय ! माता पिता कुलदेवता स्वजन सब कहाँ गये, कोई चाँदनी रात्रि का जन्मा सत्पुरुष हो तो मुझे बचाओ ! राजकुमार सिंहलसिंह ने दूर से विलापपूर्ण आक्रन्द सुना और परोपकार बुद्धि से तुरन्त दौड़ा हुआ आया। उसने बुद्धि और युक्ति के प्रयोग से कुमारी को उन्मत्त गजेन्द्र की सूड से छुड़ा कर कीर्तियश उपार्जन किया ।
सेठ ने कुमारी की प्राण रक्षा हो जाने पर बधाई बाँटनी शुरू की। राजा भी देखने के लिए उपस्थित हुआ, सेठ ने कुमार के प्रति कुमारी का स्नेहानुराग ज्ञात कर धनवती को राजा के
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