Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ F - - - - - - - - - - - - - - - - - T - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - r - - - - - - - - - - एक कहे ना वेद्य दूसरा कहे वेद्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८८।। - - - - - - - - - (रोला) मैं हूँ वह चित्पुंज कि भावाभावभावमय । परमारथ से एक सदा अविचल स्वभावमय ।। कर्मजनित यह बंधपद्धति करूँ पार मैं। नित अनुभव यह करूँ कि चिन्मय समयसार मैं ।।९२।। (हरिगीत) यह पुण्य पुरुष पुराण सब नयपक्ष बिन भगवान है। यह अचल है अविकल्प है सब यही दर्शन ज्ञान है ।। निभृतजनों का स्वाद्य है अर जो समय का सार है। जो भी हो वह एक ही अनुभूति का आधार है।।१३।। - - - - - - - - - - - एक कहे ना भात दूसरा कहे भात है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८९।। - - - - - - - ____४५ (४८) ०५ - --------- - - -- - - - - _ - _ -- _ -- - --- --- -_ --- - - - - - - - - -- (हरिगीत) उठ रहा जिसमें है अनन्ते विकल्पों का जाल है। वह वृहद् नयपक्षकक्षा विकट है विकराल है।। उल्लंघन कर उसे बुध अनुभूतिमय निजभाव को। हो प्राप्त अन्तर्बाह्य से समरसी एक स्वभाव को ।।१०।। - - - - - - - -- निज औघ से च्युत जिसतरह जल ढालवाले मार्ग से। बलपूर्वक यदि मोड़ दें तो आ मिले निज औघ से ।। उस ही तरह यदि मोड़ दें बलपूर्वक निजभाव को। निजभाव से च्युत आत्मा निजभाव में ही आ मिले ।।१४।। (रोला) है विकल्प ही कर्म विकल्पक कर्ता होवे। जो विकल्प को करे वही तो कर्ता होवे ।। नित अज्ञानी जीव विकल्पों में ही होवे। इस विधि कर्ताकर्मभाव का नाश न होवे ।।९५।। - - - - -- - - - - -- (दोहा) इन्द्रजाल से स्फुरें, सब विकल्प के पुंज । जो क्षणभर में लय करे, मैं हूँ वह चित्पुंज ।।११।। - - - -- - - - - - (४७) ____--- - - - - - - - - -- - - - - - - - - - -

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