Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ आत्मतत्त्व की उपलब्धि हो भेदज्ञान से । आत्मतत्त्व की उपलब्धि से संवर होता ।। इसीलिए तो सच्चे दिल से नितप्रति करना । अरे भव्यजन ! भव्यभावना भेदज्ञान की ।। १२९ ।। अरे भव्यजन ! भव्यभावना भेदज्ञान की । सच्चे मन से बिन विराम के तबतक भाना ।। जबतक पर से हो विरक्त यह ज्ञान ज्ञान में । ही थिर न हो जाय अधिक क्या कहें जिनेश्वर ।। १३० ।। ( ६६ ) अबतक जो भी हुए सिद्ध या आगे होंगे। महिमा जानो एक मात्र सब भेदज्ञान की ।। और जीव जो भटक रहे हैं भवसागर में। भेदज्ञान के ही अभाव से भटक रहे हैं ।। १३१ ॥ भेदज्ञान से शुद्धतत्त्व की उपलब्धि हो । शुद्धतत्त्व की उपलब्धि से रागनाश हो ।। रागनाश से कर्मनाश अर कर्मनाश से । ज्ञान ज्ञान में थिर होकर शाश्वत हो जावे ।। १३२ ।। ६७ ) निर्जराधिकार ( हरिगीत ) आगामी बंधन रोकने संवर सजग सन्नद्ध हो । रागादि के अवरोध से जब कमर कस के खड़ा हो ।। अर पूर्वबद्ध करम दहन को निरजरा तैयार हो । तब ज्ञानज्योति यह अरे नित ही अमूर्छित क्यों न हो । । १३३ ।। ज्ञानी बंधे ना कर्म से सब कर्म करते-भोगते । यह ज्ञान की सामर्थ्य अर वैराग्य का बल जानिये ||१३४ ।। ( ६८ ) (दोहा) बंधे न ज्ञानी कर्म से, बल विराग अर ज्ञान । यद्यवि सेवें विषय को, तदपि असेवक जान ।। १३५ । । ( हरिगीत ) निजभाव को निज जान अपनापन करें जो आतमा । परभाव से हो भिन्न नित निज में रमें जो आतमा ।। वे आतमा सद्दृष्टि उनके ज्ञान अर वैराग्य बल । हो नियम से यह जानिये पहिचानिये निज आत्मबल ।। १३६ ।। ( ६९ )

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