Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - होता उदित अद्भुत अचल आतम ।।२६८।। महिमा उदित शुद्धस्वभाव की नित। स्याद्वाददीपित लसत् सद्ज्ञान में जब ।। तब बंध-मोक्ष मग में आपतित भावों। से क्या प्रयोजन है तुम ही बताओ ।।२६९।। - द्रव्य और पर्यायमयी चिद्वस्तु लोक में ।।२६४।। अनेकान्त की दिव्यदृष्टि से स्वयं देखते। वस्तुतत्त्व की उक्त व्यवस्था अरे सन्तजन ।। स्याद्वाद कीअधिकाधिक शुद्धिको लख अर। नहीं लांघकर जिननीति को ज्ञानी होते ।।२६५।। (वसंततिलका) रे ज्ञानमात्र निज भाव अकंपभूमि। को प्राप्त करते जो अपनीतमोही ।। साधकपने को पा वे सिद्ध होते। - - - - - - निज शक्तियों का समुदाय आतम । _ विनष्ट होता नयदृष्टियों से।। खंड-खंड होकर खण्डित नहीं मैं। - - (१३०) (१३२) - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - अर अज्ञ इसके बिना परिभ्रमण करते ।।२६६।। स्याद्वादकौशल तथा संयम सुनिश्चिल । से ही सदा जो निज में जमे हैं।। वे ज्ञान एवं क्रिया की मित्रता से।। सुपात्र हो पाते भूमिका को ।।२६७।। एकान्त शान्त चिन्मात्र अखण्ड हूँ मैं ।।२७०।। (रोला) परज्ञेयों के ज्ञानमात्र मैं नहीं जिनेश्वर । मैं तो केवल ज्ञानमात्र हूँ निश्चित जानो।। ज्ञेयों के आकार ज्ञान की कल्लोलों से। परिणत ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेयमय वस्तुमात्र हूँ।।२७१।। अरे अमेचक कभी कभी यह मेचक दिखता। कभी मेचकामेचक यह दिखाई देता है।। अनंत शक्तियों का समूह यह आतम फिर भी। - - - उदितप्रभा से जो सुप्रभात करता। चिपिण्ड जो है खिलानिज रमणता से ।। जो अस्खलित है आनन्दमय वह । - - - - .____(१३१)___---- -- -------_ (१३३)

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35