Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ F-- -- - -- -- -- -- -- -- -- - -- -- T - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - अरे अशुद्धता करनेवाले परद्रव्यों को, अरे दूर से त्याग स्वयं में लीन रहे जो। अपराधों से दूर बंध का नाश करें वे, शुद्धभाव को प्राप्त मुक्त हो जाते हैं वे ।।१९१।। बंध-छेद से मुक्त हुआ यह शुद्ध आतमा, निजरस से गंभीर धीर परिपूर्ण ज्ञानमय । उदित हुआ है अपनी महिमा में महिमामय, अचल अनाकुल अज अखण्डयह ज्ञानदिवाकर ।।१९२।। - - - (रोला) निजरस से सुविशुद्ध जीव शोभायमान है। झलके लोकालोक ज्योति स्फुरायमान है ।। अहो अकर्ता आतम फिर भी बंध हो रहा। यह अपार महिमा जानो अज्ञानभाव की ।।१९५।। (दोहा) जैसे कर्तृस्वभाव नहीं वैसे भोक्तृस्वभाव। भोक्तापन अज्ञान से ज्ञान अभोक्ताभाव ।।१९६।। - - - - - - - - - - - - - - ( .- - --- -- -- - - - - - - - - - - -- - - - - सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार (रोला) जिसने कर्तृ-भोक्तृभाव सब नष्ट कर दिये, बंध-मोक्ष की रचना से जो सदा दूर है। है अपार महिमा जिसकी टंकोत्कीर्ण जो; ज्ञानपुंज वह शुद्धातम शोभायमान है।।१९३।। (दोहा) जैसे भोक्तृ स्वभाव नहीं वैसे कर्तृस्वभाव । कर्त्तापन अज्ञान से ज्ञान अकारकभाव ।।१९४।। --- - (रोला) प्रकृतिस्वभावरत अज्ञानी हैं सदा भोगते । प्रकृतिस्वभाव से विरत ज्ञानिजन कभी न भोगें ।। निपुणजनो! निजशुद्धातममय ज्ञानभाव को। अपनाओ तुम सदा त्याग अज्ञानभाव को ।।१९७ ।। (सोरठा) निश्चल शुद्धस्वभाव, ज्ञानी करे न भोगवे । जाने कर्मस्वभाव, इस कारण वह मुक्त है ।।१९८ ।। - - - - - - --- - - - - - - - - - - - _______ ________ - - - - - - - - -- - - - - - - - - -

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