Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - जो करता है वह केवल कर्ता ही होवे । जो जाने बस वह केवल ज्ञाता ही होवे ।। जो करता वह नहीं जानता कुछ भी भाई। जो जाने वह करे नहीं कुछ भी हे भाई।।९।। - - - तब कर्म कर्म अर कर्ता कर्ता न रहा। ज्ञान ज्ञानरूपहुआ आनन्द अपार से ।। और पुद्गलमयी कर्म कर्मरूप हुआ, ज्ञानी पार हुए भवसागर अपार से ।।९९।। पुण्यपापाधिकार (हरिगीत) शुभ अर अशुभ के भेद से जो दोपने को प्राप्त हो। वह कर्म भी जिसके उदय से एकता को प्राप्त हो ।। जब मोहरज का नाश कर सम्यकसहित वह स्वयं ही। जग में उदय को प्राप्त हो वह सुधानिर्झर ज्ञान ही ।।१००।। ! करने रूप क्रिया में जानन भासित ना हो। जानन रूप क्रिया में करना भासित ना हो ।। इसीलिए तो जानन-करना भिन्न-भिन्न हैं। इसीलिए तो ज्ञाता-कर्ता भिन्न-भिन्न है ।।९७ ।। (५०) - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -------- - - - (रोला) दोनों जन्मे एक साथ शूद्रा के घर में। एक पला बामन के घर दूजा निज घर में ।। एक छुए ना मद्य ब्राह्मणत्वाभिमान से। दूजा डूबा रहे उसी में शूद्रभाव से ।। जातिभेद के भ्रम से ही यह अन्तर आया। इस कारण अज्ञानी ने पहिचान न पाया ।। पुण्य-पाप भी कर्म जाति के जुड़वा भाई। दोनों ही हैं हेय मुक्ति मारग में भाई॥१०१।। - (हरिगीत) करम में कर्ता नहीं है अर कर्म कर्ता में नहीं। इसलिए कर्ताकर्म की थिति भी कभी बनतीनहीं ।। कर्म में है कर्म ज्ञाता में रहा ज्ञाता सदा। यदि साफ है यह बात तो फिर मोह है क्यों नाचता?||९८।। (सवैया इकतीसा) जगमग जगमग जली ज्ञानज्योति जब, अति गंभीर चित् शक्तियों के भार से।। अद्भुत अनूपम अचल अभेद ज्योति, व्यक्त धीर-वीर निर्मल आर-पार से।। (५१) - - - - - - - - - - - - -

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