Book Title: Samaysara kalash Padyanuwada
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - (दोहा) अज्ञानी अज्ञानमय भावभूमि में व्याप्त । इसकारण द्रवबंध के हेतुपने को प्राप्त ।।६८।। (सोरठा) जो निवसे निज माहि छोड़ सभी नय पक्ष को। करे सुधारस पान निर्विकल्प चित शान्त हो ।।६९।। (रोला) एक कहे ना बंधा दूसरा कहे बंधा है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। - एक कहे ना दुष्ट दूसरा कहे दुष्ट है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७३।। एक अकर्ता कहे दूसरा कर्ता कहता, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७४।। एक अभोक्ता कहे दूसरा भोक्ता कहता, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- (४०) - -- -------(३८)... -- -- - - - - - -- - - - - -- - - - - -- -------- पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७५।। एक कहे ना जीव दूसरा कहे जीव है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७६।। एक कहे ना सूक्ष्म दूसरा कहे सूक्ष्म है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७७।। पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७०।। एक कहे ना मूढ़ दूसरा कहे मूढ़ है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं, __उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७१।। एक कहे ना रक्त दूसरा कहे रक्त है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७२।। - - - - -- - - -- - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - __________(४१)_-_.

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