Book Title: Samatvayoga Ek Samanvay Drushti Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Navdarshan Society of Self Development Ahmedabad View full book textPage 2
________________ About the Book 'समत्वं योगमुच्यते' अर्थात् समता ही योग है। समता वस्तुतः परमात्मा का साक्षात् स्वरूप है । इसकी प्राप्ति भारतीय नैतिक साधना अथवा योग का मुख्य लक्ष्य है। समता का तात्पर्य है मन की स्थिरता, रागद्वेष का उपशमन, समभाव अर्थात् (सुख-दुःख में निश्चल रहना । समभाव का यही आदर्श जैनधर्म का केन्द्र बिन्दु रहा है। जैनधर्म में इसके महत्त्व को दिखाते हुए बौद्ध और भगवद्गीता के साधनामार्गों को उसके साथ निष्पक्ष रूप से प्रतिपादित किया है। पुस्तक में समत्व का अर्थ, परिभाषा, समत्व का आधार, उसे प्राप्त करने का साधन, क्रिया आदि का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। Kirin Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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