Book Title: Saman suttam Author(s): Kailashchandra Shastri, Nathmalmuni Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan View full book textPage 7
________________ अन्त में सुबी पाटको तथा विद्वानों से अनुरोध है कि ग्रथ में जहाँ भी भूल या अशुद्धि आदि दिखाई दे, उसकी सूचना गीत्र देने की कृपा करे, ताकि आगामी सस्करण में उसका परिमार्जन किया जा सके । महावीर जयन्ती चैत्र शुद्ध १३ वीर नि० सं० -५०१ २४ अप्रैल १९७५ चौथा संस्करण वीर नि० सं० २५०१ की महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर " समणसुत्तं" ग्रन्थ का देश के अनेक स्थानों पर अत्यन्त उत्साह पूर्वक विमोचन हुआ और उसी समय इस ग्रन्थ का प्रथम संस्करण समाप्त हो गया। दूसरे माह ही इसका द्वितीय संस्करण निकालना पडा प्रसन्नता की बात है कि इस प्रामाणिक ग्रंथ का देश के प्रायः सभी अचलो मे स्वागत हो रहा है। उदयपुर तथा नागपुर विश्वविद्यालय ने प्राकृत एवं जैन धर्म के बी० ए०, एम० ए० के पाठ्य ग्रन्थ के रूप में इसे मान्य किया है । कृष्णराज मेहता संचालक सर्व-सेवा-सघ- प्रकाशन सन् १९८२ मे राजस्थान सरकार द्वारा ग्रन्थ को ७३०० प्रतियों का क्रयादेश प्राप्त हुआ था जिसकी वजह से ग्रन्थ का तृतीय संस्करण प्रकाशित किया गया था । अब तक जिस प्रकार से इस ग्रन्थ को लोकप्रियता बढ़ी है उसको देखते हुए हम ग्रन्थ का यह चौथा सस्करण प्रकाशित कर पाठकों तक पहुँचा रहे हैं । हमें आशा है कि राजस्थान की भाँति अन्य राज्यो में भी इसकी माँग होगी और घर-घर मे इसका नित्य पारायण और स्वाध्याय होगा । Jain Education International For Private Personal Use Only प्रकाशक www.jainelibrary.orgPage Navigation
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