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किया कि चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को वर्धमान-जयन्ती आयेगी, जो इस साल २४ अप्रैल को पडती है, उस दिन वह ग्रन्थ अत्यन्त शुद्ध रीति से प्रकाशित किया जायगा । जयन्ती के दिन जैन-धर्म-सार, जिसका नाम 'समण सुत्त है, सारे भारत को मिलेगा । और आग के लिए जब तक जैन धर्म मौजूद है, तब तक सारे जैन लोग और दूसरे धर्म के लोग भी जव तक उनके धर्म वैदिक, बौद्ध इत्यादि जीवित रहेगे तब तक 'जैन-धर्म-सार' पढते रहेगे। एक बहुत वडा कार्य हुआ है, जो हजार, पन्द्रह सौ साल मे हुआ नही था। उसका निमित्तमात्र बाबा बना, लेकिन बाबा को पूरा विश्वास है कि यह भगवान् महावीर की कृपा है।
मै कबल करता हूँ कि मुझ पर गीता का गहरा असर है। उस गीता को छोडकर महावीर से बढकर किसीका असर मेरे चित्त पर नही है । उसका कारण यह है कि महावीर ने जो आज्ञा दी है वह बाबा को पूर्ण मान्य है। आज्ञा यह कि सत्यग्राही बनो। आज जहाँ-जहाँ जो उठा सो सत्याग्रही होता है। बाबा को भी व्यक्तिगत सत्याग्रही के नाते गाधीजी ने पेश किया था, लेकिन बाबा जानता था वह कौन है, वह सत्याग्रही नहीं, सत्यग्राही है। हर मानव के पास सत्य का अश होता है, इसलिए मानव-जन्म सार्थक होता है। तो सब धर्मो मे, सब पन्थो मे, सब मानवों मे सत्य का जो अंश है, उसको ग्रहण करना चाहिए। हमको सत्यग्राही बनना चाहिए, यह जो शिक्षा है महावीर की, बाबा पर गीता के बाद उसीका असर है । गीता के बाद कहा, लेकिन जब देखता हूँ तो मुझे दोनो में फरक हो नही दीखता है ।
ब्रह्म-विद्या मन्दिर, पवनार (वर्धा) २५-१२-७४
हस्तादार श्री विनोबाजी
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