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समाधान
( विनोबा )
मेरे जीवन में मुझे अनेक समाधान प्राप्त हुए है । उसमें आखिरी, अन्तिम समाधान, जो शायद सर्वोत्तम समाधान है, इसी साल प्राप्त हुआ । मैने कई दफा जेना से प्रार्थना की थी कि जैसे वैदिक धर्म का सार गीता में सात सौ श्लोको
मिल गया है, बौद्धो का धम्मपद मे मिल गया है, जिसके कारण ढाई हजार माल के बाद भी बुद्ध का धर्म लोगो को मालूम होता है, वैसे जैनो का होना चाहिए। यह जंनो के लिए मुश्किल बात थी, इसलिए कि उनके अनेक पन्थ है और ग्रन्थ भी अनेक है । जैसे बाइबिल हे या कुआन है, कितना भी बड़ा हो, एक ही है। लेकिन जैनो मे श्वेताम्बर, दिगम्बर ये दो है, उसके अलावा तेरापन्थी, स्थानकवासी ऐसे चार मुख्य पन्थ तथा दूसरे भी पन्थ है । और ग्रन्थ तो बीस-पचीस है । मैं बार-बार उनको कहता रहा कि आप सव लोग, मुनिजन, इकट्ठा होकर चर्चा करो और जैनों का एक उत्तम, सर्वमान्य धर्मसार पेश करो । आखिर वर्णोजी नाम का एक 'बेवकूफ' निकला और बाबा की बात उसको जॅच गयी । वे अध्ययनशील है, उन्होने बहुत मेहनत कर जैन - परिभाषा का एक कोश भी लिखा है । उन्होने जैन-धर्म-सार नाम की एक किताब प्रकाशित की, उसकी हजार प्रतियाँ निकाली और जैन समाज में विद्वानो के पास और जैन समाज के बाहर के विद्वानो के पास भी भेज दी । विद्वानो के सुझावो पर से कुछ गाथाएँ हटाना, कुछ जोडना, यह सारा करके ‘जिणधम्म' किताब प्रकाशित की। फिर उस पर चर्चा करने के लिए बाबा के आग्रह से एक सगीति बैठी, उसमे मुनि, आचार्य और दूसरे विद्वान्, श्रावक मिलकर लगभग तीन सौ लोग इकट्ठे हुए। बार-बार चर्चा करके फिर उसका नाम भी बदला, रूप भी बदला, आखिर सर्वानुमति से 'श्रमणसूक्तम्' - जिसे अर्धमागधी मे 'समणसुत्त' कहते है, वना । उसमे ७५६ गाथाएँ है। ७ का ऑकडा जैनों को बहुत प्रिय है । ७ और १०८ को गुणा करो तो ७५६ बनता है । सर्वसम्मति से इतनी गाथाएँ ली । और तय
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