Book Title: Sagai Karne Pahele
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 5
________________ है, जिसका सीधा परिणाम ये आया है कि फरियाद यानि 'कम्पलेइन' शब्द उसके शब्दकोश में है ही नहीं तथा सहनशीलता उसका स्वभाव बन गया है। किसी को दुःख पहँचे ऐसा कोई कार्य वह करती तो नहीं ही है, ऐसा बोलती भी नहीं है। शादी के बाद भी उसके फुर्सत के समय में उसका अभ्यास जारी है। आरंभ में उसने 'श्राद्धविधि' ग्रंथ का अध्ययन किया। उसके बाद उसके जीवन का ढंग सचमुच रिच हो गया और साथ ही साथ उसकी व्यवहार कुशलता भी बढ़ने लगी है। अभी आखिर में तो उसने "ज्ञानसार” का अध्ययन किया है। अगर इस बारे में मैं अपनी राय दू, अनुभव बताऊँ तो ये कहना चाहूँगा कि उसका व्यक्तित्व बेहद गुणवत्ता से परिपूर्ण यानि वह हाईली-क्वोलिफाईड बन गई है। वह जहाँ भी उपस्थित होती है, उसके आस-पास के वातावरण में एक अलग ही प्रकार की प्रसन्नता और ताजगी का अनुभव होता है। मुझे ऐसा लगता है कि वैज्ञानिक लोग जिसे पोझिटिव एनर्जी कहते हैं वह यही है। नीशु, मुझे तुझ से सिर्फ एक तरफी बात ही नहीं करनी है। अध्ययन करने से ऐसा परिणाम प्राप्त होगा ही यह जरुरी नहीं है। विद्यार्थी में भी किसी स्तर की योग्यता होनी चाहिए, उसका उद्भव भी कुछ सकारात्मक होना चाहिए, जो मेरी पत्नी में पहले से मौजूद था। मुश्किल लगने वाली मेरी शर्ते भी उसने हमारी शादीशुदा जिंदगी के हित में है, ऐसा समझ कर स्वीकार कर ली. यह बात उसकी योग्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। हाँ, यह भी निश्चित है कि ऐसे अध्ययन से भी व्यक्ति में योग्यता बढ़ने की संभावना होती है। लेकिन त जिसे उच्च शिक्षा कहता है, उसमें ऐसी कोई संभावना ही नहीं है और न ही उस में कोई सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने की आशा रखी जा सकती है, इस बात का तो अनुभव तुझे हो ही गया है। नीशु, शादीशुदा जिंदगी न तो 'रुप' से चलती है, नाही पैसे से या 'स्कूलकॉलेज' की शिक्षा से चलती है। शादी चलती है सद्गुणों से । सच्ची सुंदरता भी यही है, सच्ची सम्पत्ति और सच्ची शिक्षा भी यही है। तेरे लिए शायद समय व्यतीत हो चुका है तथापि आशा अमर होती है। तू प्रयत्न कर के देख, सुख का मार्ग तो यही है, तेरे लिए भी और उस के लिए भी। प्रसन्नता की स्रोत सकारात्मक ऊर्जा "साहबजी, आपसे एक नीजी बात करनी है, कब आऊँ ?" मुंबई-भायखला में एक चौबिस वर्षीय युवक ने मुझे प्रश्न पूछा। मैंने जो समय उसे दिया था वह उस निर्धारित समय पर आया और उसने अपनी बात कही। "महाराज श्री ! चार महिने पहले मैंने शादी की। प्रेम विवाह, मेरे और उसके घरवालों के विरोध के बावजूद। उसका उसके घर से रिश्ता एकदम समाप्त हो गया उस के बाद विवाह हुआ। मैं भी धार्मिक नहीं हूँ और वह भी नहीं है। वह पहले देरासर जाया करती थी, लेकिन बाद में उसने देरासर जाना छोड़ दिया। वह कहती है कि भगवान कुछ देते नहीं है। यह तो सिर्फ भूमिका की बात है, हकीकत में हमारी तकलीफ यह है कि हमारे दरम्यान भयंकर झघड़े होते हैं। कुछ उसकी गलती होती है और कुछ मेरी भी गलती होती है। जब झघड़ा होता है तो हम दोनों भयानक क्रोध में होते हैं, और न बोलने जैसा बोल जाते हैं, जिस कारण वातावरण तंग हो जाता है और वह झघड़े में हमेशा तलाक की धमकी देती है। महाराज श्री ! कुछ बदलाव आये और कुछ मनोरंजन हो इसलिए हम थियेटर में जाते हैं, लेकिन इससे तो हमारे झघडे और भी बढ़ जाते हैं। उसे हीरो पसंद आता है, मुझे हिरोइन अच्छी लगती है, फिर हम एक दूसरे को पसंद नहीं करते। ये आंतरिक कारण है फिर बाहर की बात का वजूद हो या न हो, लेकिन हमारा झघड़ा खड़ा हो जाता है। महाराज श्री ! मैं सचमुच में तंग आ गया हूँ। अभी तो शादी को सिर्फ चार महीने ही हुए हैं और ... सारा जीवन... मैं तो तलाक भी नहीं दे सकता - Before You Get Engaged आप सगाई करें उससे पहले ८

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