Book Title: Sagai Karne Pahele Author(s): Priyam Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 4
________________ के बहाने बाहर जाती है तो कब वापस आयेगी इसका कोई भरोसा नहीं होता। क्या कहूँ तुझे ! मैं तो उसके लिए सिर्फ एक साधन हूँ, जो उसकी, उसके शरीर की, मन की और पैसे की भूख को संतुष्ट कर सके...।" जिमित, मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता था कि मुझे इतनी सुंदर और शिक्षित पत्नी मिली है, लेकिन अब सच कहूँ तो अब उसकी तरफ देखने का भी मन नहीं करता है। उसे देखते ही मुझे घृणा होने लगती है, नफरत होती है। शायद वह मेरे लिए दुनिया की सब से कुरूप स्त्री है और उसकी शिक्षा ? माय फूट, इसकी जगह तो किसी अनपढ़ से शादी की होती तो अच्छा था... जड़ता की भी कोई हद होती है... थक गया हूँ मैं उससे... और अपने जीवन से भी। जिमित वर्षों के बाद अपने एक अभिन्न मित्र को रोते हुए देख रहा था। जिमित को लगा कि अगर सभी के पास कोई “जिमित" हो तो सब इस तरह रो पड़ें। लगभग सभी । मेच्योर व्यक्ति भी। जिमित अभी चुप था, लेकिन उसके आंसु उसके मित्र को काफी सहानुभूति, सांत्वना दे रहे थे... कुछ पल ऐसे ही बीत गये, और अब जिमित के होठ हिले... “नीशु, पाँच साल पहले तुझे मेरी बात समझ नहीं आती थी, वह तुझे अब समझ में आ जायेगी। मेरा जीवन बहुत-बहुत सुखी है, जिसका मुख्य कारण ये है कि मेरी पत्नी एकदम पॉझिटिव है। वह मेरे माँ-बाप को सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि दिल से अपने माता-पिता मानती है। मेरी माँ के कुछ माइनस पोईंट थे लेकिन उसकी सेवा और माँ के प्रति उसके अभिगम को देखकर माँ उस की तरफ हो गई। दफ्तर से घर जाऊँ और मुझे ऐसी फरियाद सुनने को मिले कि मेरी सारी थकान उतर जाए। माँ कहती है कि "ये आराम करती नहीं है" और वह कहती है कि माँ से कह दो वे किचन में न आएँ, सारी जिंदगी उन्होंने घर का बहुत काम किया है, अब उनके आराम करने का समय हुआ है, आराम करने की उम्र है।" नीशु, तू सच मानेगा ? आज तक उसने अपने खुद के लिए कभी कुछ खरीदा ही नहीं है। जो भी लिया है, वह भी मेरे आग्रह करने पर लिया है। - Before You Get Engaged पालीताणा में मैं जबरदस्ती उसे बाजार ले गया था, मैंने वहाँ उसे एक साड़ी लेने के लिये कितना कहा, उसका बस एक ही जवाब था, कि जरूरत नहीं है, जो है वो भी बहुत अधिक है। मैंने भारपूर्वक उसे कहा, "चाहे तू उसे कभी मत पहनना, लेकिन ले तो ले," तब कहीं जा कर वह साड़ी लेने को तैयार हुई, सिर्फ मेरा मन रखने के लियें। नीश, उस की नज़र टी.वी. अथवा नेट पर नहीं होती है बल्कि घर के कामों में होती है। उसने घर में सब के दिल जीत लिये हैं। अपनी फरसत के समय में वह अखबारें नहीं, धार्मिक पुस्तकें पढ़ती है। मुझे निरंतर ऐसा अनुभव होता है कि ऐसा आदर्श व्यवहार और स्वाध्याय-इन दोनों से उसके गुणों में बढ़ौतरी हो रही है। हर घटना में उसकी उदारता, सहनशीलता, निःस्पृहता, संतोष... आदि गुण आँखों को दिखाई पड़ते हैं। नीशु, तू मान या न मान, बाहर की दुनिया के साथ उसका कोई व्यवहार ही नहीं है। वह आत्मसंतुष्ट है। टोटली सेल्फ-सेटीसफाईड। उसे खुश होने के लिए किसी वस्तु की जरूरत नहीं पड़ती। वह तो पहले से ही खुश है और उसी के कारण मेरा घर स्वर्ग बन गया है। नीशु, कुछ धार्मिक-प्राथमिक एक्टीविटीझ के लिये मैंने उसे सगाई से पहले ही समझा दिया था । मेरा मतलब है उसे कन्वींस कर दिया था। उस के लिए भी धार्मिक अभ्यास जरुरी था। उसने पंच प्रतिक्रमण आदि के बारे में अर्थ के साथ अभ्यास किया है, इसलिए उसने सचमुच गहन अभ्यास किया है। आधुनिक विज्ञान भी मंत्राक्षरों के प्रभाव को स्वीकार करता है। पंच प्रतिक्रमण एवं नमस्मरण की पवित्रता ने हमारे घर और हमारे मन को पवित्र बना दिया है। ‘जीवविचार' का अभ्यास करने से उसके अंदर दया और करुणा के भाव दिखाई पड़ते हैं। वह 'चींटी' को भी 'समझती है और माँ को भी। 'नवतत्त्व' को पढ़ने से वह युनिवर्सल टूथ-वैश्विक सत्य को समझी है, इस कारण उसका व्यवहार और ईमानदारी कुछ अलग प्रकार की है। दूसरे अध्यायों के अभ्यास से और ज्ञान से उसकी श्रद्धा सबल बनी है। भाष्यों के अभ्यास से उसकी धार्मिक प्रक्रियायें हकीकत में बदल गई है। ये सब देख कर हमें उसके प्रति मान होता है। कर्म ग्रंथों के अभ्यास से उसे “कर्म के सिद्धान्त" का सूक्ष्मज्ञान हो गया आप सगाई करें उससे पहलेPage Navigation
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