Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 7
________________ रयणसार १४ विषय मात्र बाह्य लिंग कर्म क्षय का हेतु नहीं आत्म ज्ञान बिना बाह्य लिंग क्या कर सकता है आत्मा की भावना बिना दुख हो है सम्यक्च से निर्माण प्राप्त ज्ञान विहीन तप की शोभा नहीं साधु के पास परिग्रह दुख का कारण ज्ञानाभ्यास कर्म क्षय का हेतु अध्ययन ही ध्यान है सम्यक् ज्ञान ही धर्म्यध्यान है श्रुताभ्यास के बिना सम्यक् तप नहीं मुनिराज तत्त्वचिंतक होते हैं मुनिराज की अनवरत चर्या मुनिराज कैसे होते हैं ? मुक्ति-मार्ग रत योगी होता हैं मिथ्यात्व सहित मुक्ति का हेतु नही रागी को आत्मा का दर्शन नहीं दीर्घ संसारी सम्यक्त्व रहित साधु कौन ? जैन धर्म के विराधक श्रमणों को दूषित करने योग्य कार्य सम्यक्त्व विहीन मुनि परनिन्दक - आत्म प्रशंसक मोक्षमार्गी नहीं पापी जीव मोक्षमार्गी साधु मुनिचर्या के विभिन्न प्रकार धर्मानुष्ठान के योग्य शरीर पोषण के योग्य है युक्ताहारी साधु ही दुःखों के क्षय में समर्थ वह साधु हैं क्या ? पृष्ठ ५९ ६० ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ ५० ७० ७१ ७२ ७३ ૭૪ गाथा 12 0 ८३ ८४ लोक ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ ९३ ९३ ९४ ९५ ९६ ९७ ९८ ९९ १०० ७५ ७५ १०१-१०२ ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ८० ८१ १०९-११० ८२ ८३ १०३ १०४ १०५ १०६ १०७ १०८ १११ ११२ 1

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