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रयणसार
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विषय
मात्र बाह्य लिंग कर्म क्षय का हेतु नहीं
आत्म ज्ञान बिना बाह्य लिंग क्या कर सकता है
आत्मा की भावना बिना दुख हो है सम्यक्च से निर्माण प्राप्त
ज्ञान विहीन तप की शोभा नहीं
साधु के पास परिग्रह दुख का कारण ज्ञानाभ्यास कर्म क्षय का हेतु अध्ययन ही ध्यान है
सम्यक् ज्ञान ही धर्म्यध्यान है
श्रुताभ्यास के बिना सम्यक् तप नहीं
मुनिराज तत्त्वचिंतक होते हैं
मुनिराज की अनवरत चर्या
मुनिराज कैसे होते हैं ? मुक्ति-मार्ग रत योगी होता हैं
मिथ्यात्व सहित मुक्ति का हेतु नही
रागी को आत्मा का दर्शन नहीं दीर्घ संसारी
सम्यक्त्व रहित साधु कौन ? जैन धर्म के विराधक
श्रमणों को दूषित करने योग्य कार्य
सम्यक्त्व विहीन मुनि
परनिन्दक - आत्म प्रशंसक मोक्षमार्गी नहीं
पापी जीव
मोक्षमार्गी साधु
मुनिचर्या के विभिन्न प्रकार
धर्मानुष्ठान के योग्य शरीर पोषण के योग्य है युक्ताहारी साधु ही दुःखों के क्षय में समर्थ वह साधु हैं क्या ?
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