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नहीं हुआ। आप ही बताइये कि सास-ससुर के बिना इसके पति का जन्म कैसे हुआ? हमारे घर में प्रतिदिन पकवान बन रहे हैं, बासी कैसे खायेंगे? और भूखे रहने का तो सवाल ही नहीं उठता ।
मुनिराज ने एक - एक सवाल का उत्तर देते हुए कहा - सेठ! बहू ने मेरी युवावस्था और तेजस्विता देखकर कहा था कि अभी तो सवेरा है । अतः इस उभरती हुई अवस्था में ही सन्यास - जैसे कठोर मार्ग का अनुसरण कैसे कर लिया? मैंने इस बहन के रहस्यभरे भाव को देखकर उत्तर दिया कि काल अर्थात् मृत्यु का कोई भरोसा नहीं है । समय अपना ग्रास कभी भी बना सकता है। इसके बाद मैंने तत्त्वज्ञान की दृष्टि से और परीक्षा लेने की दृष्टि से प्रश्न पूछे कि तुम्हारे घर में कोई धर्मरुचि वाला है कि नहीं? क्योंकि जो मानव धार्मिक प्रवृत्ति वाला होता है, उसका जन्म ही सार्थक है, नहीं तो उसका जन्म पशु के समान है। भोजन करना, निद्रा लेना, कलह करना, मैथुन संज्ञा, यह तो पशु के समान हैं । धर्माचरण के द्वारा ही मानव और पशु मं भेद है । इसलिए तुम्हारी पुत्रवधु से मैंने तुम्हारे बारे में प्रश्न पूछे थे । उसके उत्तर से ज्ञात हुआ कि तुम्हारा छोटा लड़का पाँच साल से धर्म रुचि करता है, तुम्हारी बड़ी पुत्रवधु दो साल से तथा बड़ा बेटा एक साल से धर्म में लगा है । तुम्हारी पत्नी को धर्म पर अभी अटल विश्वास नहीं है । धार्मिक क्रिया करती है, परन्तु देखा-देखी । संशय के पालने में झूल रही है, तुम तो धर्म के नाम से अनभिज्ञ हो। दिन-रात परिग्रह जुटाने और खाने-पीने में व्यस्त हो, इसलिए तुम्हारा जन्म नहीं हुआ है। ताजा खाते हो या बासा? इसका तात्पर्य है कि तुम्हारे घर में कोई दान, पूजा, संयमाचरण आदि अनुष्ठान होते हैं कि नहीं? इसका उत्तर था - जो पूर्वभव में उपार्जन किया हुआ पुण्य है, उसके फल को भोग रहे हैं अर्थात् बासा खा रहे हैं और भूखे सो रहे हैं ।
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