Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4 Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur View full book textPage 5
________________ चुकी है जो हमारे संस्थान में हैं, तथा जिनसे विद्वान एवं साहित्य शोध में लगे हुये विद्यार्थी लाभ उठाते रहते हैं। ग्रंथ सूचियों के साथ २ करीब ४०० से भी अधिक महत्वपूर्ण एवं प्रचीन ग्रंथों की प्रशस्तियां एवं परिचय लिये जा चुके हैं जिन्हें भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की योजना है। जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये हिन्दी पद भी इन भंडारों में प्रवुर संख्या में मिलते हैं । ऐसे करीब २०८८ पदों का हमने संग्रह कर लिया है जिन्हें भी प्रकाशित करने की योजना है तथा संभव है इस वर्ष हम इसका प्रथम भाग प्रकाशित कर सकें। इस तरह खोज पूर्ण साहित्य प्रकाशन के जिस उद्देश्य से क्षेत्र ने साहित्य शोध संस्थान की स्थापना की थी हमारा वह उद्देश्य धीरे धीरे पूरा हो रहा है। भारत के विभिन्न विद्यालयों के भारतीय भाषाओं मुख्यतः प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश हिन्दी एवं राजस्थानी भाषाओं पर खोज करने वाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि वे प्राचीन साहित्य एवं विशेषतः जन साहित्य पर खोज करने का प्रयास करें। हम भी उन्हें साहित्य उपलब्ध करने में यथाशक्ति सहयोग दंगे। ग्रंथ सूची के इस भाग में जयपुर के जिन जिन शास्त्र भंडारों की सूची दी गई है मैं उन भंडारों के सभी व्यवस्थापकों का तथा विशेषतः श्री नाथूलालजी बज, अनूपचंदजी दीवान, पं० भवरलालजी न्यायतीर्थ, श्रीराजमलजी गोधा, समीरमलजी छाबड़ा, कपूरचंदजी रावका, एवं प्रो. सुल्तानसिंहजी जैन का आभारी हूं जिन्होंने हमारे शोध संस्थान के विद्वानों को शास्त्र भंडारों की सूचियां बनाने तथा समय समय पर वहां के ग्रंथों को देखने में पूरा सहयोग दिया है। श्राशा है भविष्य में भी उनका साहित्य सेवा के पुनीत कार्य में सहयोग मिलता रहेगा। हम श्री डा. वासुदेव शरणजी अग्रवाल, हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के हृदय से आभारी है जिन्होंने अस्वस्थ होते हुये भी हमारी प्रार्थना स्वीकार करके ग्रंथ सूची की भूमिका लिखने की कृपा की है । भविष्य में उनका प्राचीन साहित्य के शोध कार्य में निर्देशन मिलता रहेगा ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है। इस पंथ के विद्वान सम्पादक श्री डाः कस्तूरचंदजी कासलीवाल एवं उनके सहयोगी श्री पं० अनूपचंदजी न्यायतीर्थ तथा श्री सुगनचंदजी जैन का भी मैं आभारी हूं जिन्होंने विभिन्न शास्त्र भंडारों को देखकर लगन एवं परिश्रम से इस ग्रंथ को तैयार किया है । मैं जयपुर के सुयोग्य विद्वान श्री पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ का भी हृदय से आभारी हूं कि जिनका हमको साहित्य शोध संस्थान के कार्यों में पथ-प्रदर्शन व सहयोग मिलता रहता है। ता० ३१-२-११ केशरलाल बख्शीPage Navigation
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