Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 2
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 2 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 इस विश्व के महान ग्रन्थ “पुरुषार्थ सिद्धि उपाय" के रचियता “आचार्य अमृतचंद्र स्वामी" के हम सभी पर अनंत उपकार हैं जिसके द्वारा आचार्य ने हम को इस जगत में कैसे जिया जाय, इसकी प्रक्रिया बता दी है. यह महान ग्रन्थ करीब करीब १००० वर्ष पूर्व लिखा गया था. इस महान ग्रन्थ के प्रारंभ में ही आचार्य अमृत चंद्र स्वामी ने मंगलाचरण में भगवान के स्वरुप की वंदना की है वह अपने आप में पुर्ण ग्रन्थ का निचोड़ है. हम भगवान कैसे बन सकते है इसका बहुत अच्छी तरह से विवरण है. उपाय भी बहुत सटीक हैं. आज से कई हजार वर्ष पहले सर्वप्रथम आचार्य भूतबली स्वामी एवं आचार्य पुष्पदंत स्वामी ने लेखनकला द्वारा जिनवाणी को लिपिबद्ध किया. यह उन्हीं आचार्यों का हम पर अत्यंत उपकार है कि आज हमें भगवान की देशना जिनवाणी के माध्यम से लिखित स्वरुप में मिल रही है. प्रथम ग्रन्थ जिस दिन पूर्ण हुआ था उस दिन को हम सभी श्रुत पंचमी के नाम से जानते और मनाते हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य भगवंतो की कृपा के कारण हम जिन देशना से वंचित नहीं है. इस भौतिकतावादी युग एवं पंचम काल में वीतरागता से परिपूर्ण विरागी निर्ग्रन्थ सभी आचार्यवर को उनके इस विशुद्ध स्वरुप को देख कर हम धन्य हो गए. हमें पंच परमेष्ठी के साक्षात् दर्शन मिल गए. इस महान ग्रन्थ, “पुरुषार्थ सिद्धि उपाय” को आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने अत्यंत सरल भाषा में एवं सटीक उदाहरणों द्वारा हम सभी को देशना के माध्यम से देकर हमारे जीवन को सफल बनने की कुंजी याने चाबी दी हैं. आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने “पुरुषार्थ सिद्धि उपाय" के प्रत्येक श्लोक, जो कि मूल रूप से संस्कृत भाषा में हैं उसके प्रत्येक शब्द का हिंदी अनुवाद भी समझाया हैं जिससे हम मूल ग्रन्थ को भी जान सकते हैं. वास्तव में “पुरुषार्थ सिद्धि उपाय” एक महान आध्यात्मिक ग्रन्थ है परन्तु यह समाचीन, समकालिक भी है. इसकी पहले एवं दूसरे श्लोक में मंगलाचरण को ही हम समझ लें तो हमारे स्वरुप तक हम पहुँच सकते है. इसके पश्चात आचार्य श्री ने दोनों नय, व्यवहार नय और निश्चय नय, का बहुत से उदाहरणों के द्वारा विवरण दिया है. लोक में जीवन जीने की कला को बताया एवं सिखाया गया है. अपने वश में ही तो अपने परिणाम होते है और यदि अपने परिणामों को संभाल लिया तो पर्याय अपने आप बदल जायेगी. परिणमन बदल गया तो भगवन बनने में देर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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