Book Title: Pujyapad Devnandi ka Sanskrut Vyakaran ko Yogadan Author(s): Prabha Kumari Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 7
________________ टीका का नाम टीकाकार का नाम १. जैनेन्द्र-महावृति अभयनन्दी २. शब्दाम्भोजभास्करन्यास प्रभाचन्द्र ३. पञ्चवस्तु प्रक्रिया श्रुतकीति ४. अनिट्कारिकावचूरि मुनि विजय विमल टीका ग्रंथ सम्बन्धी विवरण हवीं शताब्दी ई० में रचित यह टीका जैनेन्द्रव्याकरण पर लिखी गई टीकाओं में सबसे प्राचीन है। यह टीका भारतीय ज्ञानपीठ काशी से प्रकाशित हुई है। प्रभाचन्द्र ने ११वीं शताब्दी ई० में जैनेन्द्रव्याकरण पर इस न्यास की रचना की जो अभयनन्दी की महावृत्ति से भी अधिक विस्तृत है तथा अपूर्ण उपलब्ध है। बम्बई के सरस्वती भवन में इसकी दो अपूर्ण प्रतियां विद्यमान हैं। श्रुतकीति ने १२वीं शताब्दी ई० में इस प्रक्रिया-ग्रन्थ की रचना की। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां पूना के भंडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट में है।' जैनेन्द्र-व्याकरण की आनट्कारिका पर श्वेतांबर जैन मुनि विजयविमल ने १७वीं शताब्दी में अनिट्कारिकावचूरि की रचना की है । इसकी हस्तलिखित प्रति छाणी के भंडार में (संख्या ५७८) है।' जैनेन्द्र-व्याकरण पर मेघविजय नामक किसी श्वेतांबर मुनि ने १८वीं शताब्दी ई० में वृत्ति की रचना की। दिगम्बर जैन पं० महाचन्द्र ने अभयनन्दी की महावृत्ति के आधार पर जैनेन्द्र-व्याकरण पर २०वीं शताब्दी ई० में लघुजैनेन्द्र नामक वृत्ति लिखी है जो महावृत्ति की अपेक्षा सरल है। इसकी एक प्रति अंकलेश्वर के दिगम्बर जैन मंदिर में और दूसरी अपूर्ण प्रति प्रतापगढ़ (मालवा) के पुराने जैन मंदिर में है। ५. जैनेन्द्र-व्याकरण-वृत्ति मेघविजय ६. लघु जैनेन्द्र पं० महाचन्द्र १. जनेन्द्रमहावृति, सम्पा० शम्भुनाथ त्रिपाठी, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १६५६. २. शाह, अम्बालाल प्रे०, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पंचम भाग, वाराणसी, १९६६, पृ० ११. ३. वही, पृ० १२. ४. वही, पृ० १५. ५. वही, पृ० १५. ६. शाह, अंबालाल, प्रे० जे० सा. बृ० इ०, पं० भा०, पृ० १३. जैन प्राच्य विद्याएं १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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