Book Title: Pujyapad Devnandi ka Sanskrut Vyakaran ko Yogadan
Author(s): Prabha Kumari
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
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प्रमाण है।' उक्त व्याकरण-ग्रन्थ में अनेक ऐसी विशेषताएं हैं जो कि व्याकरण के क्षेत्र में इसको महत्त्वपूर्ण सिद्ध
करती हैं। प्रत्याहार-सूत्र
पूज्यपाद देवनंदी द्वारा रचित जैनेन्द्र-व्याकरण के आरम्भ में प्रत्याहार-सूत्र उपलब्ध नहीं होते किन्तु निम्न प्रमाणों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि प्रारम्भ में जैनेन्द्र-व्याकरण के आरम्भ में प्रत्याहार-सूत्र रहे होंगे
(क) अष्टाध्यायी की भाँति जैनेन्द्र-व्याकरण में भी संक्षेप के लिए प्रत्याहारों का प्रयोग उपलब्ध होता है। उदाहरण के
लिए अच्', इक्', एड', ऐच्', झल', यण" तथा हल् आदि प्रत्याहार यहां प्रयुक्त हुए हैं। (ख) जैनेन्द्र-व्याकरण में प्रत्याहार बनाने की विधि का निर्देशक सूत्र “अन्त्येनेतादि:" (जं० व्या० १/१/७३)
उपलब्ध है। (ग) जिस प्रकार अष्टाध्यायी में "हयवरट" प्रत्याहार सूत्र का "र" लेकर तथा "लण्" प्रत्याहार सूत्र का "अ"
लेकर 'र' प्रत्याहार बनाया गया है उसी प्रकार यहाँ पर 'र' प्रत्याहार का निर्माण किया गया है। इस तथ्य की पुष्टि जनेन्द्र-व्याकरण के 'रन्तोऽणुः' (ज० व्या० १-१-४८) सूत्रपर अभयनन्दी के निम्न कथन से होती है
"रन्त इति लणो लकाराकारेणप्रश्लेषनिर्देशात् प्रत्याहारग्रहणम् ।" (घ) जैनेन्द्र-व्याकरण के 'कार्यार्थोऽप्रयोगीत्, (जै० व्या० १/२/३) सूत्र की वृत्ति में अभयनन्दी ने 'अइ उण् णकारः
कहकर 'ण' को इत् संज्ञक कहा है । जैनेन्द्र-व्याकरण के 'अणुदित् स्वस्यात्मनाऽभाव्योऽतपरः' (ज. व्या० १/१/७२) सूत्र में प्रयुक्त 'अण्' प्रत्याहार का स्पष्टीकरण अभयनन्दी ने उसी सूत्र की वृत्ति में इस प्रकार किया है--"इदमणग्रहणं परेण णकारेण।"
जैनेन्द्र-महाव त्ति के आरम्भ में दी गई भूमिका में पं० महादेव चतुर्वेदी ने जनेन्द्र-व्याकरण के दोनों सूत्रपाठों से सम्बद्ध प्रत्याहार-सूत्रों का उल्लेख किया है। पंचाध्यायी के सूत्रपाठ तथा अष्टाध्यायी के सूत्रपाठ में पर्याप्त साम्य है । इसी तथ्य को दृष्टि में रखते हुए पं० महादेव चतुर्वेदी ने जैनेन्द्र-व्याकरण के प्रत्याहार-सूत्रों को भी अष्टाध्यायी के प्रत्याहार-सूत्रों के समान माना है । उनके अनुसार जैनेन्द्र-महावृति के आधार से उपलब्ध पंचाध्यायी के सूत्रपाठ से सम्बद्ध प्रत्याहार सूत्र ये हैं
"अ इ उण १ । ऋ ल क् २ । एओङ ३ । ऐ औच ४ । हय वर ट् ५। लण् ६ । ञ म ङ ण न म् ७। झ भ ज ८ । घढ धप । ज ब ग उद श् २० । ख फछठ थ च ट त व ११। क प य १२ । श ष स र १३ । हल १४ ।
उल्लेखनीय है कि इन प्रत्याहार-सूत्रों का अष्टाध्यायी के प्रत्याहार-सूत्रों से पर्याप्त साम्य है। शब्दार्णव-चन्द्रिका के प्रत्याहार-सूत्र इस प्रकार हैं
"अ इ उ ण् १ । ऋक् २। ए ओङ ३ । ऐ औच ४ । ह य व र ल ण् ५ । । म ङ ण न म् ६। झ म ७ । घढध ८ । जब ग ड द श्६ । ख फ छठ थ च ट त व १०। क प य ११। श ष स अं अः क पर १२ । हल् १३।"
देवनन्दितपूजेशनमस्तस्मै स्वयम्भुवे ॥ -मंगल श्लोक, जै० व्या०, १०१. १. सिद्धिरनेकान्तात्, वही, १/१/१. २. पाकालोऽच प्र-दी-पः, वही, १/१/११. ३. इकस्तो, वही, १/१/१७. ४. पदेप, वही, १/१/१६.
भादगैप वही, १/१/१५.
झलिकः, जै० व्या०, १/१/८३. ७. इग, यणो जि:, वही, १/१/४५. ८. हलोऽनन्तरा: स्फः, वही, १/१/३. ६. चतुर्वेदी, महादेव, जै० म० ३०, भूमिका, पृ० १४.
भाचार्यरन भी देशभूषण जी महा......
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