Book Title: Pujyapad Devnandi ka Sanskrut Vyakaran ko Yogadan Author(s): Prabha Kumari Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 1
________________ पूज्यपाद देवनन्दी का सस्कृत-व्याकरण को योगदान -डा. प्रभा कुमारी पाणिनि के परवर्ती वैयाकरणों में जैन विद्वानों की प्रधानता रही है। जैनाचार्यों द्वारा रचित व्याकरण-ग्रन्थों में चार व्याकरण ग्रन्थ प्रमुख हैं १. जैनेन्द्र-व्याकरण २. शाकटायन-व्याकरण ३. सिद्धहैम-शब्दानुशासन ४. मलयगिरि-शब्दानुशासन जैनाचार्यों द्वारा रचित उपलब्ध व्याकरण-ग्रन्थों में काल की दृष्टि से जैनेन्द्र-व्याकरण सर्वप्रथम है। इस व्याकरण ग्रन्थ के रचयिता पूज्यपाद देवनन्दी हैं । वे कर्नाटक के निवासी थे।' उनका समय ईसा की ५ वीं शताब्दी है। जैन सम्प्रदाय के विद्वान को कृति होने के कारण जैन सम्प्रदाय मे तो जैनेन्द्र-व्याकरण की प्रसिद्धि थी ही, साथ ही अन्य धर्मानुयायी विद्वानों ने भी इस ग्रन्थ के कर्ता का आदरपूर्वक स्मरण किया है । मुग्धबोध के रचयिता बोपदेव (१३ वीं शताब्दी ई.) ने उनको पाणिनि आदि महान् वैयाकरणों की कोटि में रखा है इन्द्रश्चन्द्र: काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः । पाणिन्यमरजनेन्द्रा जयन्त्यष्टादिशान्दिकाः ॥' उनके द्वरा रचित यह श्लोक १३वीं शताब्दी ई० में पूज्यपाद देवनन्दी की ख्याति का परिचायक है। पूज्यपाद देवनन्दो-कृत व्याकरण विषयक रचनाएं जनेन्द्र-व्याकरण के अतिरिक्त पूज्यपाद देवनन्दी ने उस पर जैनेन्द्र-न्यास की रचना की जो सम्प्रति अनुपलब्ध है। पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने पज्यपाद देवनन्दी द्वारा रचे गए व्याकरण-विषयक ग्रन्थों का उल्लेख किया है, जिनके नाम इस प्रकार हैं .. धातुपाठमूल २. धातुपारायण ३. गणपाठ ४. उणादिसूत्र ५. लिङ गानुशासन ६. लिङ गान शासन-व्याख्या १. प्रेमी, नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, १९५६, पृष्ठ ५०-५१. उपाध्याय, बलदेव, संस्कृत शास्त्रों का इतिहास, वाराणसी, १९६६, प. ५७७-५७८. शर्मा, एस० पार०, जैनिज्म एन्ड कर्नाटक कल्चर, धारवार, १६४०.१० ७२. २. पाठक, के०बी०; जैन शाकटायन कन्टम्परेरी विद अमोघवर्ष-1, इन्डियन एन्टीक्वेरी, बण्ड ४३. बम्बई, १९१४.१० २१०-२११. अभ्यंकर, के.बी.,ए डिक्शनरी प्रॉफ सम्कृत ग्रामर, बड़ौदा, १९६१.५० १५०.बेल्वाल्कर, एम. के. सिस्टम्स प्रॉफ संस्कृत ग्रामर, भारतीय विद्या प्रकाशन, १९७६,१० ५३. अग्रवाल, वासुदेवशरण, जैनेन्द्र महावृति, सम्पा० शम्भुनाथ त्रिपाठी, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५६, भूमिका, पृ०७ शास्त्री, महामहोपाध्याय, हरप्रसाद ए डेस्किप्टिव के टेलग प्रॉफ द संस्कृत मनस्क्रिप्टम, ब०६. कलकत्ता, १९६१, प्राक्कथन. १०५२ मीमांसक, युधिष्ठिर, सस्कृत-व्याकरण शास्त्र का इतिहास, प्रथम भाग, हरयाणा, विक्रम संवत्, २०३०, पृ० ४४६-- ४५१. ३. बोपदेव, कविकल्पद्र म, सम्पा० गजानन बालकृष्ण पल मुले, पूना १९५४, पृ०१. ४. मीमांसक, युधिष्ठिर, ज०म.व. भूमिका, पृ० ५१. जैन प्राज्य विद्याएं १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 38