Book Title: Prernani Pavan Murti Sadhvi Mrugavatishreeji
Author(s): Kumarpal Desai, Malti Shah
Publisher: B L Institute of Indology
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परिशिष्ट-5
પ્રેરણાની પાવનમૂર્તિ 'वल्लभ-स्मारक' तो तेरे अरमान का, बन गया इक श्रृंगार,
झडियां संक्रांत की लगती जहां, हर इक दिन बन गया था त्यौहार, नित्य बजते जहां बैंड थे बाजे, प्रातः नृत्य करती थी । काल की नजरों में, ख्याति तेरी, कांटा बनकर चुभती थी । हिन्दु, मुसलिम, सिख, ईसाई, 'नाजर' हर इक धर्म से प्यार, तेरी नजर में भारत, 'वीर प्रभु' का था परिवार, इस युग की अवतार थी, कोई दर्शन को दुनिया टुटती थी । काल की नजरों में, ख्याति तेरी, कांटा बनकर चुभती थी ।
परीक्षा में उत्तीर्ण हुई वल्लभ प्रणेता जैन भारती कागड़ा तीर्थोद्धारिका महत्तरा साध्वी श्री मृगावतीजी महाराज
- धरमपाल जैन, बी.ए. ओनर्स, लुधियाना एक दिन बैठे थे वल्लभ सोच में पंजाब की । कौन लेगा सार मेरे बाद इस पंजाब की ।।
मैं तो बैठा दूर हूं आयु भी बढ़ती जा रही ।
___ ऋण गुरु का कैसे चुकाऊं, बस यह ही चिन्ता खा रही ।। उमंग पर थी जो उमंगे उमंग बन कर रह गई । ललित की सब लालिमा भी मरुस्थली में रह गई ।।
मुम्बई में बैठे गुरु का ध्यान कलकत्ता में गया ।
शील श्री जी की लाडली मृगावती पर जा टिका ।। सोचा विचारा प्रभाव परखा और गुरु मुस्करा दिये । निज काम्बली आशीश दे आदेश उन्हें लिखवा दिये ।।
आदेश पा गुरुदेव का मृगावती जी चल दिये ।
देखने गुलजारे आतम वल्लभ का वे चल दिये ।। पंजाब की प्यासी धरा ने स्वागत अम्बाला में किया । इन्तजार में गुरुदेव की पहला चौमासा वहीं किया ।।
गुरु आए नहीं आदेश आया मौन सा उनके लिये । मैं नहीं आउंगा समुद्र मार्ग दर्शन के लिये ।।
२८०.
यह है गुरु आतम का बगीचा चप्पा चप्पा फरसना । कांगडा लहरा में जाकर श्रद्धा सुमन भी अर्चना ।।
पंजाब के हर भाग में गुरुणी किया प्रवास था ।
झडी अमृत की लगाई लुधियाना का वर्षावास था ।। प्रचार विद्या का बढे विद्यालयों का प्रोत्साहन किया । बुरी रसमों को मिटाने डंकाए युद्ध था बना दिया ।।
नारी जाति को सबल बनाने महिला मण्डल कई बने ।
युवक मंडल संगीत मंडल स्थाध्याय मंडल भी बने ।। ज्ञान गरिमा देख आपकी आचार्य आत्म ने सरस्वती था कहा । गुरु समुद्र ने जैन भारती गुरु इन्द्र ने महत्तरा पद दिया ।।
कांगडा सरहन्द लहरा तीर्थ संज्ञा पा गये ।
लुधियाना पर की कृपा पंचतीर्थों बना गये ।। प्रेरणा दी श्रीसंघ को बल्लभ स्मारक की महान । बहुमुखी स्मारक सफल बनाने लगाया अपना दिलोजान ।।
निर्वाण शताब्दी और कान्फ्रेंस में योगदान भुला सकते नहीं ।
महासभा सजीव कर दी यह भी झुटला सकते नहीं ।। वल्लभ स्मारक बनाया नींव बनकर स्वयं उनकी तामीर बन गये । कल तक जो साक्षात् थे अब वे स्वयं तसवीर बन गये ।।
सुशिष्या आप की सुज्येष्ठा जी परम निष्ठावान थी ।
४० वर्ष तक सेवा जो की उसकी न कोई मशाल थी ।। सम्भव है जगह बनाने आसन बिछाने पहले ही वो चल दिये । जगह ढूंढी आसन बिछाया संकेत आपको कर दिये ।।
शिष्याएं आपकी सुव्रताश्री, सुयशा जी एवं सुप्रज्ञा ।
निष्ठावान है महावीर की श्रीसंघ की सेवा में है सदा ।। है शक्ति नहीं इस कलम में गुणगान कर सकता नहीं । हो कृपा दृष्टि इस 'धर्म' पर अहसान भुला सकता नहीं ।।