Book Title: Prayaschitta Samucchaya Author(s): Pannalal Soni Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha View full book textPage 2
________________ श्रीवीतरागाय नमः। सनातन जैनग्रंथमाला २२ श्रीमद्-गुरुदासाचार्यविरचित प्रायश्चित्त-समुच्चय . (हिंदीटीका सह) - संयमामलसद्रनगभीरोदरसागरान् । . श्रीगुरूनादराद्वन्दे रत्नत्रयविशुद्धये ॥१॥ अर्थ-जो संयमरूप निर्मल और समीचीन रत्नोंके अगाध और उदार समुद्र हैं उन श्रीमहन्तादि पंच गुरुपोंको रत्नत्रयको विवदिके लिए भक्ति-भावसे नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-जो जिस गुणका इच्छुक होता है वह उसी गुण. वालेकी सेवा शुश्रूषा करता है । जैसे धनुष चलानेकी विद्या. सीखनेवाला पुरुष उस धनुषविद्याको जानने और चलानेवालेPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 219