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समणो
छेदपउत्ता [(छेद)-(पउत्त) संयम-भंग-युक्त
भक 1/1 अनि] (समण) 1/1
श्रमण समण (समण) 2/1
श्रमण ववहारिणं [(ववहारि)-(ण) 2/1 वि] प्रायश्चित विधान का
ज्ञानी जिणमदम्हि (जिणमद) 7/1 जिनसिद्धान्त में आसेज्जालोचित्ता [(आसेज्ज)+(आलोचित्ता)]
आसेज्ज (आस) संकृ शरण लेकर
आलोचित्ता (आलोच) संकृ आलोचना करके उवदिहें (उवदिट्ठ) 1/1 वि उपदिष्ट (त) 3/1 सवि
उसके द्वारा कायव्वं (का) विधिकृ 1/1 किया जाना चाहिए
तेण
अन्वय- पयदम्हि समणस्स समारद्धे कायचे?म्हि जदि छेदो जायदि तस्स पुणो आलोयणपुब्विया किरिया समणो छेदपउत्तो जिणमदम्हि ववहारिणं समणं आसिज्जालोचित्ता तेण उवदिढे कायव्वं ।।
अर्थ- जागरूक श्रमण द्वारा प्रारंभ की गई शरीर-क्रिया में यदि संयमभंग उत्पन्न होता है (तो) उस (श्रमण) के द्वारा ही आलोचना की प्राचीन (पूर्व शास्त्रों के अनुसार) क्रिया (की जानी चाहिये)। (या) (जो) श्रमण संयम-भंगयुक्त (है) (उसे) जिनसिद्धान्त में (प्रतिपादित) प्रायश्चित विधान के ज्ञानी श्रमण की शरण लेकर (अपने दोषों की) (उनके सामने) आलोचना करके उस (श्रमण) के द्वारा (जो कुछ) उपदिष्ट (है) (वह) किया जाना चाहिये।
नोटः
सम्पादक द्वारा अनूदित
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार