Book Title: Pravachansara Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 128
________________ पसत्थ 54, 55 . पुव्व प्रशंसनीय सर्वोत्तम से युक्त/उत्पन्न पुब्विया प्राचीन प्पडिच्छग ग्रहण करनेवाला प्पधाण मुख्य प्रधान वृद्ध बहित्थ बाहरस्थित (बहिरंग) भागि भागीदार/भाजन मिच्छुवजुत्त अश्रद्धा से युक्त मात्र रहिद रहित मेत 17, 38 5, 23, 28 के बिना 75 लह लोगिग 68, 69 वधकर 18 अल्प सांसारिक लौकिक हिंसा करनेवाला प्रमुख विपरीत अनेक प्रकार प्रवीण रहित 1 वसह विवरीद विविह e 43, 44 63 विसारद विहूण प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (121)

Loading...

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144