Book Title: Pravachansara Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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दीर्घकाल तक
चिरं च्चिय
जागरूकतापूर्वक द्वितीयार्थक अव्यय
यदि
1, 11, 18, 31, 39, 43, 44, 46, 50, 51, 64, 66, 67, 68, 69, 70 23,37
ल
58
जध
4, 5, 25
जधा जस्स-जेण
जैसा जिस तरह से
चूँकि तृतीयार्थक अव्यय जैसा एक ही साथ
जहा
जुगवं
नहीं
4, 6, 5, 19, 20, 22, 29, 30, 36, 37, 39, 44, 47, 50, 53, 56, 64, 65, 68, 72 73 4, 17, 21, 36, 37
पत्थि
नहीं है नहीं है नमस्कार
णमो
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
(127)

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