Book Title: Pravachansara Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 129
________________ वृद्ध शुद्ध शुद्ध निरन्तर संयमी संतत्त संजद संपजुत्त संसारि युक्त संसार में परिभ्रमण करनेवाला अपने योग्य समान सजोग सम समग्ग समभाव समभिहद समिद सराग सवद एक सा भाव रखनेवाला 59 श्रम से थका हुआ सावधान सरागी राग-सहित व्रत-सहित गृहस्थ श्रावक जिनशासन में दृढ़तापूर्वक 65 लगे हुए कर्मास्रव-सहित स्थापित सागार सासणत्थ सासव सिद्ध (122) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार

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