Book Title: Pravachanasara
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 14* प्रवचनसार जीवनमें मैने प्रथम बार ही सुना था । मरण क्या वस्तु है, यह जाननेकी मुझे तीव्र आकांक्षा थी । बारम्बार में पूर्वोक्त प्रश्न करता ही रहा । अन्तमें वे बोले-तेरा कहना सत्य है-अर्थात् अमीचन्द्र मर गए हैं । मैंने आश्चर्य पूर्वक पूछा- “मरण क्या चीज है ?" । दादाने कहा-"शरीर से जीव निकल गया है और अब वह हलन चलन आदि कुछ भी क्रिया नहीं कर सकता; खाना पीना भी नहीं कर सकता। इसलिए अब इसको तालाबके समीपके इमसानमें जला आयेंगे । में थोड़ी देर इधर-उधर छिपा रहा। बाद में तालाब पर पहुंचा। तट पर दो शाखा वाला एक बबलका पेड़ था, उस पर चढ़कर मैं सामने का सब दृश्य देखने लगा । चिता जोरों से जल रही थी. बहुत आदमी उसको घेर कर बैठे हुए थे । यह सब देखकर मुझे विचार आया, मनुष्यको जलाने में कितनी क्रूरता । यह सब क्यों? इत्यादि विचारोंसे आत्मपर्दा दूर हो गया ।" एक विद्वानने श्रीमदजीको पूर्वजन्मके सम्बन्धमें अपने विचार प्रगट करनेको लिखा था, उसके उत्तरमें उन्होंने जो कुछ लिखा था, वह निम्न प्रकार है-“कितने ही निर्णयोंसे में यह मानता हूँ कि इस कालमें भी कोई कोई महात्मा पहले भवको जाति स्मरण ज्ञानसे जान सकते हैंऔर यह जानना कल्पित नहीं, परन्तु सम्यक् (यथार्थ) होता है । उत्कृष्ट संवेग, ज्ञान, योग और सत्संगसे यह ज्ञान प्राप्त होता है । अर्थात् पूर्वभव प्रत्यक्ष अनुभव में आ जाता है। जब तक पूर्वभव अनुभव गम्य न हो तब तक आत्मा भविष्य कालके लिये शंकित भावसे धर्म प्रयत्न किया करती है। और ऐसा सशंकित प्रयत्न योग्य सिद्धि नहीं देता।" पुनर्जन्मको सिद्धिके लिये श्रीमदजीने एक विस्तत पत्र लिखा है, जो 'श्रीमद राजचंद्र' ग्रन्थ में प्रकाशित है । पुनर्जन्मसम्बन्धी इनके विचार बड़े गंभीर और विशेष प्रकारसे मनन करने योग्य है । १९ वर्ष की अवस्थामें श्रीमद्जीने बम्बईको एक बड़ी भारी सभामें सौ अवधान किए थे, जिसे देखकर उपस्थित जनता दाँतों तले उँगली दबाने लगी थी। अंग्रेजी के प्रसिद्ध पत्र 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' ने अपने ता. २४ जनवरी १८८७ के अंक में श्रीमद्जी के सम्बन्ध में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था 'स्मरण शक्ति तथा मानसिक शक्तिके अद्भुत प्रयोग ।' . राजचन्द्र रवजीभाई नामके एक १९ वर्षके युवा हिन्दुको स्मरण शक्ति तथा मानसिक शक्तिके प्रयोग देखनेके लिये गत शनिवारको संध्या समय फरामजी कावसजी इन्स्टीट्यूट में देशी सज्जनोंका एक भव्य सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलनके सभापति डाक्टर पिटर्सन नियक्त हए थे। भिन्न भिन्न जातियोंके दर्शकोंमें से दस सज्जनोंको एक समिति संगठित की गई । इन सज्जनोंने दस भाषाओं के छ छ शब्दोंके दस वाक्य बनाकर रख लिए और अक्रमसे बारी बारीसे सुना दिए। थोडेही समय बाद इस हिन्दु युवकने दर्शकोंके देखते देखते स्मृतिके बलसे उन सब बाक्योंको क्रम पूर्वक सुना दिया । युवकको इस शक्तिको देखकर उपस्थित मंडली बहुत ही प्रसन्न हुई । इस यवाकी स्पर्शन इन्द्रिय और मन इन्द्रिय अलौकिक थी। इस परीक्षाके लिये अन्य अन्य प्रकारकी कोई बारह जिल्द इसे बतलाई गई और उन सबके नाम सुना दिये गए । इसके बाद इसकी आँखोंपर पट्टी बांध कर इसके हाथोंपर जो जो पुस्तकें रक्खी गई, उहें हाथोंसे टटोलकर इस युवकने सब पुस्तकोंके नाम बता दिए । डॉ. पिटर्सनने इस युवकको इस प्रकार आश्चर्यपूर्ण स्मरण शक्ति और मानसिक शक्ति का विकास देखकर बहुत बहुत धन्यबाद दिया, और समाजकी ओरसे सुवर्ण-पदक और 'साक्षात सरस्वती' की पदवी प्रदान की गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 612