Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal View full book textPage 7
________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ।। श्री जिनाय नमः ॥ ★ श्री गौतम स्वामी विरचित ★ दैवसिक (रात्रिक) प्रतिक्रमण श्लोक- जीवे प्रमादजनिताः प्रचुरा प्रदोषाः, यस्मात् प्रतिक्रमणतः प्रलयं प्रयान्ति । तस्मात्तदर्थममलं, मुनिबोधनार्थं, वक्ष्ये विचित्रभवकर्म विशोधनार्थम् ॥१॥ . अर्थ :-प्रतिक्रमण की आवश्यकता को बतलाते हुए, मुनियों के लिए भी उसके स्पष्टीकरण की प्रतिज्ञा करते हुए, पूज्य आचार्य कहते है कि जीव में प्रमाद से जनित अनेक दोष पाये जाते है। वे प्रतिक्रमण करने से प्रलय (नाश) को प्राप्त होते है, इसलिए नाना भवों में संचित हुए कर्मरूप दोषों की विशुद्धि के निमित्त मुनियों के समझने के लिए प्रतिक्रमण का निर्मल अर्थ करता हूं।।१।। आशा. है मुनिगण इसे अवश्य ध्यान से पढ़ेंगे तथा इस आवश्यक क्रिया का नियमित रूप से पालन करेंगे। श्लोक- पापिष्ठेन दुरात्मना जड़धिया, मायाविना लोभिना, रागद्वेष मलीमसेन मनसा दुष्कर्म यनिर्मितम् । त्रैलोक्याधिपते जिनेन्द्र भवतः, श्रीपादमूलेऽधुना, निन्दापूर्वमहं जहामि सततं, वर्तिषुः सत्पथे ॥२॥ अर्थ : हे तीन लोक के अधिपति जिनेन्द्रदेव ! अत्यन्त पापी, दुरात्मा, जड़बुद्धि, मायावी, लोभी और राग द्वेष से मलीन मेरे मन ने जो दुष्कर्म उपार्जन किया है उसका निरन्तर सन्मार्ग में चलनेPage Navigation
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