Book Title: Pramey Kamal Marttand
Author(s): Mahendrakumar Shastri
Publisher: Satya Bhamabai Pandurang

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Page 11
________________ सम्पादकीय ८ तुलनात्मक टिप्पण - ग्रन्थके प्रथम अध्याय में अन्य जैन जैनेतर दर्शन ग्रन्थों से प्रमेयकमलमार्त्तण्ड की तुलना करने में सहायक टिप्पण दिए हैं । ऐसे टिप्पण न केवल तुलना में ही उपयोगी होते हैं, किन्तु भावोद्घाटन में भी उनसे पर्याप्त सहायता मिलती है । प्रकाशक की मर्यादा के अनुसार मैंने इन टिप्पणों का प्रथम परिच्छेद लिखकर ही सन्तोष कर लिया है । ९. प्रस्तावना - यद्यपि निर्णयसागर से प्रकाशित ग्रन्थों की प्रस्तावनाएँ संस्कृत में लिखी जातीं हैं, परन्तु राष्ट्रभाषा की यत्किञ्चित् सेवा करने के विचार से मैं अपने सम्पादित ग्रन्थों की प्रस्तावनाएँ हिन्दी में ही लिखता आया हूँ । इसीविचारने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना को भी हिन्दी में लिखाया है । प्रस्तावना में प्रस्तुत ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के समय आदिका उपलब्ध सामग्री के अनुसार विवेचन किया है । प्रभाचन्द्राचार्य का द्वितीय न्यायग्रन्थ न्यायकुमुदचन्द्र है । उसके द्वितीयभाग की प्रस्तावना का "आचार्य प्रभाचन्द्र" अंश इसमें ज्यों का त्यों दे दिया गया है । आभार - श्रीमान् पं० सुखलालजी तथा श्री कुन्दनलालजी जैन की प्रेरणा से मैं इस ग्रन्थ के सम्पादन में प्रवृत्त हुआ । माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला के मन्त्री, सुप्रसिद्ध इतिवृत्तज्ञ पं० नाथूरामजी प्रेमीने न्याय कुमुदचन्द्र द्वि० भाग की प्रस्तावना को इस ग्रन्थ में भी प्रकाशित करने की उदारतापूर्वक अनुमति दी है । जैन सिद्धान्त भवन आरा के पुस्तकाध्यक्ष श्री पं० भुजवलीजी शास्त्री आराने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड की लिखित प्रति भेजी । श्री पं० खुशालचन्द्रजी M. A. साहित्याचार्यने शिलालेख का मूल पाठ पढ़कर सहायता की । प्रियशिष्य श्री गुलाबचन्द्रजी न्याय - सांख्यतीर्थ और श्री केशरीमलजी न्यायतीर्थने पाठान्तर लेने में तथा परिशिष्ट बनाने में सहायता पहुँचाई । निर्णयसागर प्रेसके मालिक ने अपनी मर्यादा के अनुसार ही सही, इसका द्वितीय संस्करण निकालने का उत्साह किया । मैं इन सब का हार्दिक आभार मानता हूँ । 1 माघकृष्ण पंचमी वीरनि० संवत् २४६७ १७|१|१९४१ ई० } Jain Educationa International सम्पादक---- न्यायाचार्य महेन्द्रकुमार स्या०वि० काशी For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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