Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 64
________________ -I. 11 ] स्वरकार्यम् 1 तालवृन्त चामर वराकी स्थापित कुमारी इत्यादि ] || [ तह तहा । सव्वह सव्वहा अण्णह अण्णा । पअअ पाअअ । हलिअ हालिअ । उक्खअ उक्खा | खदिअ खादिअ । पहर पहार । चड्डु चाडु । वाअड वाआड | पत्थर पत्थार । पवह पवाह । मज्जर मज्जार । तलवेंट तालवेंट । चमर चामर । वरई वराई | थविअ थाविअ । कुमरी कुमारी । ] 1 टीका । आदिर्ज इति यस्य जः । खादिर्ह इति खस्य ह: 2 | आदिना पारिजातः परिजाओ पारिजाओ || सदा शब्दस्येद् वा ॥१०॥ सइ सआ वा ॥ सदा ॥ टीका । लोपोऽनाद्ययुग्वर्गादितृतीययोरिति दकारलुक् ॥ Vr. I. 11 RT.I.1.8 Mk. 1. 14 पानीयादेरीत् ॥११॥ पानीयादेरीद् ह्रस्वो भवति ॥ पाणिअं पानीयम् ॥ द्वितीय तृतीय इत्यादि ॥ [ अलिअ । करिस । दुइअ । Vr. I. 18 RT. I. 1. 11 Mk. I. 21 Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only Ho. I. 72 T. I. 2. 34 Ho. I. 101 T. I. 2. 51-2 टीका | णोऽयुग्मस्य ( II. 103 ) इति नस्य णः । यस्यायादेर्वा (II. 3) इति यलुक् पाक्षिकः॰ ॥ अलीक करीष तइअ । ] 1) C. कुमार्यादिः ; others कुमारादि । 2) Found only in S. 3) Found in S1 only. 4) After this P has जइ नआ ; तइ तथा But it is not found in any other manuscripts. Besides the sutra itself gives the prescription only for the word I. Hence these have not been included. 5) Found in S. 6) B. इत् । It is evidently a mistake, because in the वृत्ति we find long ई 1 BP. तृतीय इत्यादि ; others तृतीयेत्यादि । 8) Found only in S. 7 ) www.jainelibrary.org

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