Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 78
________________ Vr. III.8 RT.I.8.1 Mk. III. B Op. T c. 1.66 (Vrtti) .I.2.17 -II 54] हल्कार्यम् १६ जा' सर्वज्ञादेः ॥४॥ सव्वजो । अहिज्जो। सुज्जो । जाण ॥ सर्वज्ञः। अभिज्ञः । सुज्ञः। ज्ञानम् ॥ श्मशानादेः शः ॥५०॥ मसाण । मस्सू ॥ श्मशानम् । श्मश्रुः॥ मध्याह्न हः ॥५१॥ मज्झण्णो ॥ मध्याह्नः ॥ Vr. III.6 RT.I.8.2 Mk. III.7 Ho. II.88 T.I.4.76 Vr, III.7 RT. I. 3.2 Mk. III.8 Hc. II.84 T.I.4.81 वियुक् क्लिष्टादेः परस्वरश्च ॥५२॥ Vr. III.60 Ho. II. 101 Pu. III. 27T.1.4,96-96 RTI.3.17 Mk. III. 77 क्लिष्टादेर्युक्तस्यादिवियुग भवति ॥ परस्वर इतरस्य स्वरश्च भवति । किलिट्ठो क्लिष्टः ॥ श्लिष्ट रत्न क्रिया शाङ्ग ॥ [ सिलिट्ठ । रअण। किरिआ। सारंग।] कृष्ण वा ॥३॥ कण्हो कसणो किसणो वा ॥ कृष्णः ॥ टीका । ऋत् ( I. 27 ) इति अकारः ॥ क्ष्मादेह स्वश्च ॥५४॥ Vr. III.61 Rr. I. 3. 16 Mk. III. 78 Ho. II. 110 T. I. 4. 104 Ho. II 18 101,104 Vr. III. 63 Pu. III. 80 RT.1.3.16 Mk. III. 42 खमा॥ श्लाघा क्लेश ही श्री स्त्री॥ [ सलाहा। किलेस। हिरी। सिरी। इत्थिरी ] टीका। आदावप्यत्र इकारस्य पृथग वियुक्तत्वं लोकानुसारात् ॥ 1) P. जः। 2) P. स: (wrong). 3) Found in s only. 4) इत्थिरी is iound in S1 only. 5) This tika is found in S1 and in the foot-note of P. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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