Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः
[ II. 114
दाढादिर्दष्ट्रादेः ॥११४॥
Vr.IV.36 Pu.IV.84 RTI.524 Mk, IV.64
of.HD.II.117 123,199,174
Vr. IV. 32 Ho II. 144 Mk. IV.61T. I. 8.96
Vr. IV.28 RT.I.6.9 Mk. IV.65
He.II.116 T.I.4.113
Vr.IV.31,38 RT. I. 6.9 of.Mk.IV.64
of.Hc.1I
138 II, 178
दंष्ट्रादेः स्थाने दाढादिर्भवति ॥ दंष्ट्रादाढा। दुहिता धूआ। भ्रः भूमआ। वैदूर्यम् वेरूलीयं। ललाटम् णडालं । उभयम् अड्डह। पार्श्वम् पासं। बृहत् बाहु। स्तम्बः लंबो। चिह्नम् चिणं। वधः वद्धो। कबन्धः कबद्धो। बृहस्पतिः भअप्फई। आलानम् आणालं। भस्म छार। गृहम् घर॥
न गृहपतौ ॥११॥ गहवई ॥ गृहपतिः॥
करणो रणोर्व्यत्ययः स्त्रियाम् ॥११६॥ कणेरू ॥ करेणुः॥
गोणादिर्वा गोदावर्यादेः ॥११७॥ गोआवरी गोणा वा ॥ निलयः णिहेलणो। उत्पलम् फल्लोटू। चूतः माअंदो। शुक्तिः सिप्पी । पीतम् पीअणं । विद्युत् विजुणा। • मलिनम् मइल। सुवर्णम् सुपण्णं। अवकाशः ओआसो। अपसारः ओसारो॥
ङनाहन्यनुस्वारः ॥१८॥ हलि परे ङनोः स्थानेऽनुस्वारो भवति ॥ पंती। मंती । पङक्तिः । मन्त्री ॥
अश्रादेरादिमध्य-गुर्वक्षरपरः ॥१२॥ Vr. IV. 15_Ho. 1. 26 अंसू अश्नु ॥ वक्रः वंको ॥ श्मशू स्पर्श मनस्विनी शुष्क दर्शन इत्यादि। [मंसू। फंस। माणंसिणी। सुह। दंसण।] 1) BCCIP. कुणे रु, SS, कणे। 2) P. फल्लोढ़। :) P. शिप्सी,
Vr. IV. 17 RT.I.6.15T Mk. IV.23
Ho I. 80 .I.1.47
रा
Vr. IV.15 Mk. IV. 20
Ho. 1.26 Vr.I.1.42
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