Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः [II. 126 Vr. IV.10-11 HO.I.18-19 Pu. IV.16 T.I.1.85-86 RT. I 5.12 Mr. IV.27 समास-पुंलिङ्गयोरकारः ॥१२६।। वाअक। सुवाओ । वाचाकृतम् । सुवाक् ॥ दिक-शरत्-प्रावृषोऽदन्ताश्च ॥१२७॥ दिसो। सरदो। पाउसो॥ टीका। पाउस । पाउस इति प्रकृते पुसि प्रावट-शरन्नसन्ताः ( II. 129) इति पुस्त्वम् । लुगन्तो हल् ( II. 120 ) इति लोपः। अता सोरिति ( III. 2 ) ओत्वम् ॥ __ पृष्ठादिर्वा ॥१२॥ Mk. IV. 29 पृष्ठादिः स्त्रियां वा भवति ।। पुटु पुट्ठी ॥ अक्षि प्रश्न ॥ [ अच्छी अच्छि। पण्हा पण्हो।] टीका। पुट्टमिति । उदृत्वादेश्व' ( I. 30 )॥ पुंसि प्रावृट-शरनसन्ताः ॥१२६॥ प्रावृट -शरन्-नकार-सकारान्ताश्च पुसि भवन्ति ॥ पाउसो। सरदो। कम्मो। जसो॥ प्रावृट् । शरत् । कर्म । यशः॥ टीका। नान्तं नपुंसकं विद्धि पुलिङ्गेऽपि प्रचक्षते । एवं लिङ्गे विपर्यासो शेयः शब्दान्तरेष्वपि ॥ न शिरो-नमसी ॥१३०॥ Vr. IV.18 Pu. IV. 18 RT. I. 5.18 Mk. IV.27 Hc. I. 31 . I.1.60 Vr.IV.18-19 Pu. IV.18 Mk. IV.27 Ro. I. 32 T.I.1.49 सिर । णह॥ 1) Found in S, only. 2) Found in S only. 3) ABCC, SS.Pशरद्वसन्ताः । But it should be corrected as न, which we find in the vrtti, 4) S. सिरिं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140