Book Title: Prakritadhyaya
Author(s): Kramdishwar, Satyaranjan Banerjee, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः [II. 55 स्नेहे वा ॥५॥ Vr. III. 64 Hc. II. 102 Pu.III.31T.I.4.97 RT. 1.3.18 Mk. III.67 सिणेहो हो वा ॥ स्नेहः॥ टीका। आदावप्यत्र इकारस्य पृथग वियुक्तत्वं लोकानुसारात् ॥ क्लान्त्यादेरित्वान् ॥५६॥ Vr. III. 62 Hc. II. 106 Pu. III. 28-29 T. I.4.101 RT. I. 3.17 Mk. III.80 RT. I. 3.18 Mk. III.89 किलंतो क्लान्तः॥ ग्लान म्लान स्वप्न गर्दा अर्हा हर्ष इत्यादि। [ गिलाण । मिलाण । सिविण । गरिहा । अरिहा। हरिस।] टीका। प्रक्रान्तत्वादादियुक्तत्वम् । अत्रादि-ग्रहणात् सर्षपः सरिसओ, स्पर्शः फरिसो फंसो वा, दर्शनं दरिसण दंसण वा, आदर्शः आअरिसो, उत्कर्षः3 उक्करिसो, वर्षवरः वरिसवरी इत्यादीनां ग्रहणम् ॥ स्नानादेर्वा ॥५७॥ पहाणं सिणाणं वा स्नानम् । अग्गी अगिणी वा अग्निः ॥ सुत्थं सुसित्थं वा सुस्थ्यम् ॥ टीका। बहुलाधिकारादस्य विधेरनित्यत्वादग्गीत्यादौ न भवति ॥ ज्यायामीत्वान् ॥८॥ जीआ जीया वा ॥ ज्या॥ टीका। यस्यायादेर्वा ( II. 3 ) ॥ Vr. III.66 RT. I. 8.19 Mk. III. 93 Ho. II. 115 T.I.4.110 1) P. ण्णे हो। 2) Found in S1 only. 3) P reads उत्कृष्टः। 4) Thia tika from अत्रादि to ग्रहणम् is found in si. and in the foot-note of P. where it begins with आदिना and ends in वरिसवरो। 5) Found in 81 only. 6) BS, जीया। 7) Found in s only. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140